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सिद्धान्त बाँधे गये कर्म ही है तो दुःखोसे छूटने के लिये निम्न बातोंकी जानकारी आवश्यक है--
१--उस वस्तुका क्या स्वरूप है, जिसको छुटकोरा दिलाना है ? : २-कर्मका क्या स्वरूप है ? क्योंकि जसे स्वर्णकारको और उसमे मिले हुए द्रव्यकी ठीक ठीक पहचान होना आवकि है' वैसे ही एक आत्मशोधकको भी आत्मा और उसके साथ मिले हुए परद्रव्यकी पहचान होना आवश्यक है, क्योकि उसके विना वह आत्माका शोधन ही नहीं कर सकता।
३ वह अजीव कर्म जीव तक कैसे पहुंचता है ? ४--और पहुँचकर कैसे जीवके साथ बंध जाता है ?
इस प्रकारजीव और कर्मकास्वरूप और कर्मोका जीवतक आगमन और वन्धनका ज्ञान हो जानेसे संसारके कारणोका पूरा ज्ञान हो जाता है। अब उससे छुटकारा पाने के लिये कुछ बाते जानना आवश्यक है
५-नवीन कर्मवन्धको रोकनेका क्या उपाय है? ६-पुराने बंधे हुए कर्मोको कैसे नष्ट किया जा सकता है ? ७-इन उपायोसे जो मुक्ति प्राप्त होगी वह क्या वस्तु है ?
इन सात वातोंका ज्ञान होना प्रत्येक मुमुक्षुके लिये आवश्यक है, इन्हीको सात तत्त्व कहते है। पौद्गलिक कर्मोके सयोगसे ही यह जीव वन्धनमे है और सव प्रकारके कष्ट भोगता है । इस सम्बन्धका अन्त किस प्रकार किया जाये यह एक समस्या है, जिसे प्रत्येक मुमुक्षुको हल करना है। धर्म ही वह विज्ञान है जिसके द्वारा उक्त समस्याको हल किया जा सकता है और उसीके हल करनेके लिये उक्त सात बाते बतलाई गई है। ये सात बाते ही ऐसी है जिनकी श्रद्धा और ज्ञानपर हमारा योगक्षेम निर्भर है। इसीलिये इन्हे तत्त्व-सज्ञा दी गई है। तत्त्व यानी सारभूत पदार्थ ये ही है। जो व्यक्ति इनको नहीं जानता, सम्भव है वह बहुत ज्ञान रखता हो, किन्तु यथार्थमे उपयोगी बातोका ज्ञान उसे नहीं है।