________________
जैनधर्म
अर्थात्- 'हाथी के द्वारा मारे जानेपर भी जैन मन्दिरमें नहीं जाना चाहिये ।'
१२६
तो हमें वडा अचरज होता है । तत्कालीन साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के सिवा इसका कोई दूसरा कारण हमारे दृष्टिगोचर नही होता ।
अस्तु,
हम पहले लिख आये है कि जैनमूर्ति निरावरण और निराभरण होती है । जो लोग सवस्त्र और सालङ्कार मूर्तिकी उपासना करते है उन्हें शायद नग्नमूर्ति अश्लील प्रतीत होती है । इस सम्बन्धमे हम अपनी ओरसे कुछ न लिखकर सुप्रसिद्ध साहित्यिक काका कालेलकरके वे उद्गार यहाँ अकित करते है जो उन्होंने श्रमण वेलगोला (मैसूर) में स्थित बाहुबलिकी प्रशान्त किन्तु नग्नमूर्तिको देखकर अपने एक लेखमें व्यक्त किये थे । वे लिखते है -
'सासारिक शिष्टाचारमे आसक्त हम इस मूर्तिको देखते ही मनमें विचार करते है कि यह मूर्ति नग्न है । हम मनमें और समाजमे भांति भांतिकी मैली वस्तुओका संग्रह करते है, परन्तु हमे उससे नही होती है घृणा और नही आती है लज्जा । परन्तु नग्नता देखकर घबराते है और नग्नतामे अश्लीलताका अनुभव करते हैं। इसमें सदाचारका द्रोह है और यह लज्जास्पद है । अपनी नग्नताको छिपानेके लिये लोगोने आत्महत्या भी की है । परन्तु क्या नग्नता वस्तुत. अभद्र है ? वास्तवमे श्रीविहीन है ? ऐसा होता तो प्रकृतिको भी इसकी लज्जा आती । पुष्प नग्न रहते हैं, पशु पक्षी नग्न ही रहते है । प्रकृतिके साथ जिन्होने एकता नही खोई है ऐसे बालक भी नग्न ही घूमते है । उनको इसकी शरम नही आती और उनकी निर्व्याजिताके कारण हमें भी इसमें लज्जा जैसा कुछ प्रतीत नही होता । लज्जाकी बात जाने दें। इसमें किसी प्रकारका अश्लील, वीभत्स, जुगुप्सित, विश्री, अरोचक हमें लगा है, ऐसा किसी भी मनुष्यको अनुभव नही। इसका कारण क्या ? कारण यही कि नग्नता प्राकृतिक स्थितिके साथ स्वभावशुदा है । मनुष्यने