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2. काल-अवसर्पिणी काल के तीसरे सुषमा दु:षमा काल के अंतिम भाग में और चतुर्थ काल
में जन्मे हए जीव ही सिद्ध होते हैं। 3. गति-मनुष्यगति से ही सिद्धगति प्राप्त होती है।
सिद्धों के 12 भेद बताते हुए तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वामी कहते हैं1. क्षेत्र-कोई भरत क्षेत्र से और कोई ऐरावत क्षेत्र से सिद्ध हुए हैं। इस प्रकार क्षेत्र की अपेक्षा
सिद्धों में भेद होता है। 2. काल-कोई उत्सर्पिणी काल में सिद्ध हुए हैं। 3. गति-कोई मनुष्य गति से सिद्ध हुए हैं। इस गति से ही सिद्ध होते हैं। 4. लिंग-वास्तव में अलिंग से ही सिद्ध होते हैं अथवा द्रव्य पुल्लिंग से ही सिद्ध होते हैं।
भावलिंग की अपेक्षा तीनों लिंगों से मोक्ष (मक्त) हो सकता है। 5. तीर्थ-कोई तीर्थंकर बनकर सिद्ध होते हैं, कोई बिना तीर्थकर हुए सिद्ध होते हैं और कोई
तीर्थकर के मोक्ष चले जाने के बाद सिद्ध होते हैं उनके आम्नाय में। 6. चारित्र-चारित्र की अपेक्षा कोई एक-एक से अथवा कोई भूत पूर्व नय की अपेक्षा दो तीन
चारित्र से सिद्ध होते हैं। 7. प्रत्येक बुद्धबोधित-कोई स्वयं संसार से विरक्त होकर मोक्ष को प्राप्त है और कोई किसी
के उपदेश से। 8. ज्ञान-कोई एक ही ज्ञान से और कोई भूतपूर्वनय की अपेक्षा दो तीन चार ज्ञान से सिद्ध
होते हैं। 9. अवगाहन-कोई उत्कृष्ट अवगाहना पांच सौ पच्चीस धनुष से सिद्ध होते हैं, कोई मध्यम
अवगाहना से और कोई जघन्य अवगाहना (कुछ कम साढे तीन हाथ) से सिद्ध होते हैं। 10. अन्तर-एक सिद्ध से दूसरे सिद्ध होने का अन्तर जघन्य से 'एक' समय और उत्कृष्ट से ___ 'आठ' काय का है तथा विरह काल जघन्य से 'एक' समय और उत्कृष्ट से छः मास तक
होता है। 11. संख्या-जघन्य से एक समय में एक ही जीव सिद्ध होता है, और उत्कृष्ट से 'एक सौ ____ आठ' जीव सिद्ध होते हैं तथा विदेहादि क्षेत्रों से सिद्ध होते हैं। 12. अल्पबहुत्व-अर्थात् संख्या में हीनाधिकता। उपर्युक्त ग्यारह भेदों में अल्पबहुत्व
होता है।
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