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सिर्फ गुलाब जामुन के कारण ही मिला हुआ है। थोड़ी देर बाद गुलाब जामुन प्लेट में डाल दिये जाते हैं और दोने को खिड़की से नीचे फेंक दिया जाता है, उसे गली के कुत्ते चाटने लगते हैं।
ठीक इसी प्रकार मनुष्य की प्रतिष्ठा मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन के कारण है। सम्यग्दर्शन गुलाब जामुन की भाँति है और यह शरीर दोना है। शरीर पर अभिमान नहीं करना चाहिए इसकी कीमत तो आत्मदर्शन से युक्त आत्मा के कारण है। यह शरीर हमें पूर्व के बहुत पुण्य द्वारा प्राप्त हुआ, यदि यह पुण्य समाप्त हो गया और नवीन का अर्जन नहीं किया तो सीधे नरक में जा पड़ेंगे जैसे गली में दोना जा पड़ा था। सम्यकत्व प्राप्त करने का पुरुषार्थ ही वीतराग भाव है और यदि सम्यकत्व प्राप्त हो जाये तो फिर शरीर रूपी दोने पर दृष्टि नहीं डालनी चाहिए अन्यथा सम्यग्दर्शन के बिना मोक्षमार्ग नहीं बन पायेगा चाहे जितना ज्ञान प्राप्त करो। जितना चाहो चारित्र पा लो । सब व्यर्थ ही होगा। सम्यग्दर्शन के बिना स्थिति आपकी दोने से अधिक नहीं होगी।
भत्तीएं पुज्जमाणो विंतरदेवो वि देवि जदि लच्छी। तो किं धम्मे कीरदि एवं चित्तेह सद्दिट्ठी ॥
सम्यग्दृष्टि विचार करता है कि सरागी देवों की पूजा से यदि लक्ष्मी मिलती हो तो धर्म करने की क्या आवश्यकता है। अतः वह किसी सरागी देवी-देवताओं की भक्ति पूजा नहीं करता और करना भी नहीं चाहिए |
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