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"क्या तुम संगीत जानते हो?" नाविक ने कहा, नहीं। विद्वान ने फिर पूछा- "क्या व्याकरण जानते हो, पढ़ना-लिखना जानते हो?" नाविक ने फिर ना कहा और बोला-"मैं तो मात्र इस पानी में तैरना जानता हूँ।" विद्वान ने कहा "तम्हारी जिन्दगी तो पानी में ही गयी। मैं तो न्याय, संस्कत गणित और बड़े-बड़े ग्रन्थों को जानता हूँ। तैरने पर तो मैंने थिसिस लिखी है।" ___अभी यह बात चल ही रही थी कि पानी में तूफान आ गया। नौका डूबने लगी। नाविक ने पूछा “पंडित जी! तैरना जानते हो? पंडित जी ने कहा कि मैं तो कभी पानी में उतरा ही नहीं हैं।" नाविक ने कहा "आपने थिसिस तो तैरने पर लिखी. न्याय व्याकरण भी पढा परन्त अब डूबना पड़ेगा।" नाविक ऐसा कहकर नौका से बाहर कूद गया और पंडित जी नाव सहित डूब गए।
अब अपनी बात है। लोग ग्रन्थों का अध्ययन करके आगम ज्ञान तो अच्छी तरह कर लेते हैं औरों को समझा भी देते हैं। परन्तु अब तक उन्होंने आत्मा के बारे में ही जाना है, आत्मा को नहीं जाना। वे जानकारियाँ उनके लिए परिग्रह बन जाती हैं और अन्धकार पैदा कर देती हैं। धनवान से भी ज्यादा अहंकारी पंडित होता है। वह कागज की नाव में बैठकर तिरना चाहता है। आत्मा को जाने तो आत्मज्ञानी हो। इसके बिना जीवन नहीं बदल सकता। आगम से समझकर अपने में देखना है।
स्वयं को देखें एक राजधानी में एक फकीर भीख माँगता था। वह एक ही जगह बैठकर 30 वर्ष से भीख माँग रहा था। एक दिन वह मर गया। उसके चारों तरफ की जमीन गन्दी हो गई थी। इसलिए उसे जब लोग लेकर जाने लगे तो जहाँ वह बैठता था वहाँ चारों तरफ जमीन खोदी गयी। लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हजारों आदिमी वहाँ इकट्ठे हो गए। वहाँ जमीन के नीचे ध न गड़ा हुआ था। बहुत खजाने भरे हुए थे। उस भिखारी ने सब जगह हाथ फैलाया, परन्तु अपने नीचे खोदकर नहीं देखा। लोग कहने लगे भिखारी पागल था। ___ अब अपनी बात है। हम भी धन के पीछे दौड़ लगा रहे हैं और उससे सुख की इच्छा कर रहे हैं, लेकिन उसमें सुख था ही कब, जहाँ देखो वहाँ जैसे रेस में घोड़े दौड़ते हैं और हम सोचते हैं कि मेरा घोड़ा पीछे न रह जाए, वैसे धन के मान के प्यासे 24 घण्टे दौड़ रहे हैं कि मैं सबसे आगे निकल जाऊँ परन्तु अपने अन्दर झाँक कर देखें कि तीन लोक का नाथ अपना चैतन्य प्रभु अपने में ही विराजमान हैं। कहीं बाहर में खोजने की जरूरत नहीं है। अनन्त काल बाहर में, मन्दिर में, तीर्थों पर, सब जगह खोजा, परन्तु अपने अन्दर में झाँकर देख ले तो कहीं खोजना नहीं पड़ता, क्योंकि जहाँ था वहाँ हमने खोजा ही नहीं। कबीर ने भी कहा है
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