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आस्त्रव तस्व
कर्मों के आने को आस्रव कहते हैं- इसके दो भेदों को बताते हुए आचार्य नेमिचन्द
कहते हैं।
आसवदि जेण कम्मं, परिणामेणप्पणो स विण्णेयो। भावासवो जिणुत्तो, कम्मासवणं परो होदि ॥29॥
आत्मा के जिस परिणाम से कर्म आता है, वह जिनेन्द्र देव का कहा हुआ भावास्रव है और ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्मों का आना द्रव्यास्रव है।
बंध तत्त्व
भावबन्ध और द्रव्यबन्ध का लक्षण'
बज्झदि कम्मं जेण दु, चेदण भावेण भावबन्धो सो । कम्मादपदे साणं, अण्णोण्णपवेसणं इदरो ॥
- द्रव्यसंग्रह, 32
आत्मा के जिस परिणाम से कर्म बंधता है, वह परिणाम भाव बन्ध है। कर्म और आत्मा के प्रदेशों का परस्पर एकमेक होकर मिल जाना द्रव्य बन्ध है ।
संवर तत्त्व को बताते हुए कहते हैं
संवर तत्त्व
"
चेदणपरिणामो जो कम्स्सासवणिरोहणे हेदू । सो भाव संवरो खलु, दव्वासवरोहणे अण्णो ॥
- द्रव्यसंग्रह, 7
आत्मा का जो परिणाम कर्म के आस्रव के रोकने में कारण है, वह परिणाम निश्चय से भाव संवर है और जो द्रव्यकर्म को आने से रोकता है उसे द्रव्य संवर कहते हैं।
निर्जरा तत्त्व
जहकाण तबेण य, भुत्तरसं कम्मपुग्गलं जेण । भावेण सडदि णेया, तस्सडणं णिज्जरादुविहा ॥
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- द्रव्यसंग्रह