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आचार्य कुन्दकुन्द कहते है
भूयत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्य पावं च। आसवसंवरणिज्जरबन्धो मोक्खो य सम्मत्तं॥
-आचार्य कुन्दकुन्च समयसार, 13 द्रव्यसंग्रह में आचार्य नेमिचन्द्र आचार्य कहते हैं
आसवबंधणसंवर-णिज्जरमोक्खो सपुण्णपावा जे।
जीवाजीव-विसेसा, तेवि समासेण पभणामो॥२८ जो जीव और अजीव के विशेष भेद पुण्य और पाप सहित आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष हैं उनको भी संक्षेप से कहता हूँ। जीव-तत्त्व का भाव
कत्ताभोइ अमुत्तो सरीरमित्तो अणाइणिहणो य। दंसणणाणुवओ गो णिद्धिठो जिणवरिंदे हिं।
___ -आचार्य कुचकुच भावप्राभृत, 48 श्री जिन्नेन्द्र देव ने जीव को कर्ता, भोक्ता, अमूर्त, शरीर-प्रमाण, नित्य तथा दर्शन और ज्ञान रूप उपयोग का धारक कहा है। जीव के नव अधिकार
जीवो उबओगमओ, अमत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो। भोत्ता संसारत्थो, सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई।
- द्रव्यसंग्रह, 2 जीवत्व (जीने वाला), उपयोगमयत्व, अमूर्तिकत्व, कर्तृत्व, स्वदेह-परिमाणत्व, भोक्तृत्व, संसारित्व, सिद्धत्व और स्वभाव से ऊर्ध्वगमनत्व, ये जीव के नौ अधिकार हैं।
अजीव तत्त्व अजीव के पांच भेद हैं
अज्जीवो पुण णेओ, पुग्गलधम्मो अधम्म आयासं। कालो पुग्गल मुत्तो, रुबादिगुणो अमुत्तिसेसा दु॥15॥
(द्रव्यसंग्रह आचार्य नेमियन्त्र) पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल को अजीव द्रव्य जानना चाहिए। उनमें रूप, रस, गंध और स्पर्श गुण वाला पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है और शेष चार द्रव्य अमूर्तिक हैं।
धर्म-गतिहेतुत्व, अर्धम-ठहराना, आकाश-अवगाहना, काल-वर्तना।
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