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सम्यग्दर्शन के सोपान
सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने के चार सोपान हैं। पहला सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का यथार्थ श्रद्धान। दूसरा उनके बताये हुए तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान। तीसरा स्व-पर का यथार्थ श्रद्धान। चौथा आत्मानुभूति। इनमें पहला साधन है तो दूसरा साध्य है, दूसरा साधन है तो तीसरा साध्य है, तीसरा साधन है तो चौथा साध्य है। अर्थात् जब सच्चे देव, शास्त्र, गुरु की यथार्थ श्रद्धा होगी, तब उनके बताये हुए सात तत्त्वों की भी यथार्थ श्रद्धा होगी। जब तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान होगा तब स्व- पर की श्रद्धा भी होगी। जब स्व-पर की श्रद्धा होगी तब आत्मानुभूति भी होगी। जब आत्मानुभूति होगी, तब वीतरागता आएगी। जब वीतरागता आएगी तब सुख अर्थात् मुक्ति होगी।
सम्यग्दर्शन का प्रथम सोपान : सच्चे देव, शास्त्र और गुरु का यथार्थ श्रद्धान
सबसे पहले हमें सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का निर्णय करके उन पर यथार्थ श्रद्धा करनी चाहिए।
सच्चे देव, शास्त्र, गुरु
सांचो देव सोई जामे दोष को न लेश कोई वही गुरु जाके उर काहूकी न चाह है सही धर्म वही जहाँ करुणा प्रधान कही ग्रन्थ जहाँ आदि अन्त एक सौ निबाह है यही जग रत्न चार इनको परख यार सांचे लेउ झूठे डार नर भाव को लाय है मानुष विवेक बिना पशु के समान गिना ताते यह ठीक बात पारनी सलाह है।
देव का स्वरूप
क्षुत्पिपासे भयद्वेषौ मोहरागौ स्मृतिर्जरा। रुग्मृतौ स्वेदखेदौ च मदः स्वापो रतिर्जनिः ॥७॥ विषादविस्मयावेतौ दोषा अष्टादशे रिताः । एभिर्मुक्तो भवेदाप्तो निरञ्जनपदाश्रितः ॥
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(धर्मसंग्रह आ.)