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________________ क्षमा माँगी और राजा ने जैनधर्म अंगीकार किया, सम्यग्दर्शन प्राप्त किया. उनका तो जीवन ही बदल गया। उस समय चेलना रानी की प्रसन्नता का क्या कहना! 4. मुनिराज के सम्बोधन से वैराग्य प्राप्त सिंह की आँसुओं की धारा बहती है और वह सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है। यह सिंह कौन है? वह है भगवान महावीर का जीव। दस भवपूर्व का यह प्रसंग है विदेह क्षेत्रस्थ तीर्थकर की वाणी से मुनियों ने जाना कि सिंह का यह जीव 10वें भव में तीर्थंकर होगा। जिस जंगल से वह वनराज एक हिरण को पकड़कर खा रहा था, उसी जंगल में, ऊपर से दो मुनिराज उतरे और सिंह के सामने आकर खड़े हो गए। सिंह तो आश्चर्य से देखता ही रह गया। मुनियों ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा"अरे सिंह! अरे आत्मा! तुझे यह शोभा नहीं देता, 10वें भव में तो तू त्रिलोकीनाथ तीर्थंकर होने वाला है। अरे! भविष्य में जगत को वीतरागी अहिंसा का सन्देश देने वाला तू आज ऐसी हिंसा में पड़ा है। छोड़! छोड़! यह हिंसा के भाव.......जाग.......जाग! यह सुनते ही सिंह को पूर्वभव का ज्ञान होता है, पश्चाताप से मिथ्यात्व, आँसुओं के रूप में पिघलकर बाहर निकल जाता है और वह सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है। बहुमान और भक्ति से मुनियों की प्रदक्षिणा करता है और बाद में अनुक्रम से आत्मसाधना में वृद्धिगत होता हुआ महावीर होता है। अहा! सिंह की सम्यक्त्व प्राप्ति का यह प्रसंग। जब एक क्रूर पशु भी सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकता है, तब फिर हम मनुष्य होकर भी सम्यग्दर्शन से रहित जीवन जियें-यह हमारे लिए शोभा की बात नहीं है। आत्मा की रमणता ही सम्यग्दर्शन है। जैनाहार विज्ञान का मूल आधार अंहिसा है। अन्धश्रद्धा तर्क स्वीकार नहीं करती।
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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