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सम्यग्दर्शन, ज्ञान, और चारित्र की अपेक्षा उत्कृष्टपने को प्राप्त होता है, इसलिए सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग में खेवटिया के समान कहा जाता है। जिस प्रकार नौका को तटान्तर ले जाने में खेवटिया मुख्य है उसी प्रकार रत्नत्रय में सम्यग्दर्शन मुख्य है
सम्यग्दर्शन की मुख्यता का कारण बताते हुए आचार्य समंतभद्र कहते हैं
विद्यावृत्तस्य सम्भूति-स्थितिवृद्धिफलोदयाः । न सत्यसति सम्यक्त्वे, बीजाभावे तरोरिव ।।
( रत्नकरण्ड श्रावकाचार )
बीज न होने पर वृक्ष की उत्पत्ति, वृद्धि और फलोत्पत्ति न होने के समान सम्यग्दर्शन के न होने पर सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र की स्थिति, वृद्धि और फलोत्पत्ति नहीं हो सकती ।
आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि मिथ्यादृष्टि मुनि से सम्यग्दृष्टि गृहस्थ अच्छा है। गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो, निर्मोहो नैव मोहवान । अनगारो गृही श्रेयान्, निर्मोहो मोहिनो
मुनेः ।
( रत्नकरण्ड श्रावकाचार )
दर्शनमोह रहित सम्यग्दृष्टि गृहस्थ मोक्षमार्ग में स्थित है, किन्तु दर्शनमोह सहित मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि मोक्षमार्ग में स्थित नहीं है, अतएव इस कारण मिथ्यात्वी द्रव्यलिंगी मुनि से मिथ्यात्व रहित सम्यग्दृष्टि गृहस्थ श्रेष्ठ है।
पंडित दौलतराम कहते हैं
मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान चरित्रा । सम्यकता न लहै सो दर्शन, धारौ भव्य पवित्रा । 'दौल' समझ सुन चेत सयाने, कालवृथा मत खोवे। यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै ।
(छहढाला )
आचार्य समंतभद्र कहते हैं कि सम्यक्त्व समान उपकारक और मिथ्यात्व समान कोई बैरी नहीं है
न सम्यक्त्वसमं किञ्चित्, त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्व - समं नान्यत्तनूभृताम् ।
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( रत्नकरण्ड श्रावकचार )
तीनों कालों में और तीनों लोकों में जीवों को सम्यक्त्व के समान कोई दूसरा उपकारक नहीं है, और मिथ्यात्व के समान कोई अनुपकारक नहीं है।