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चतुर्थ अध्याय : सम्यग्दर्शन "सम्यग्दर्शन का अर्थ आत्मा को अपनी अनन्त शक्ति की जो विस्मृति हो गयी है, उसकी स्मृति करना है। जो असत्य है संसार का कारण है, स्वभाव नहीं परन्तु अज्ञानता से उसे अपना समझ लिया है, उस भ्रम को दूर करना एवं हेय का त्याग और उपादेय का ग्रहण करना है।" "मिथ्यादृष्टि जिसे आध्यात्मिक स्वरूप का ज्ञान नहीं है वह व्यक्ति दुःख रूपी जंगल की पीड़ा में घास तथा लकड़ी की तरह जलकर राख हो जाता है। उसके जीवन में वासना के काले धब्बे पड़ जाते हैं। कष्टों से मुक्ति ही नहीं मिल पाती। सांसारिक भोग सामग्री में ही फंसे रहते हैं और सड़-गलकर तड़पते हैं। किन्तु सम्यग्दृष्टि जानता है कि आत्मा को केवल दु:ख नहीं जलाता, यह इन्द्रिय जनित सुख भी जलाता है। इसलिए दोनों में समताभाव रखता है और संसार में उदासीन होकर रहता है।
भगवान महावीर की परम्परा में एवं जिनागम में सम्यग्दर्शन का विशेष महत्त्व है। जिस प्रकार बिना नींव के भवन एवं बिना जड़ के वृक्ष का महत्त्व नहीं है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बिना किये गये त्याग-व्रत निप्रयोजन हैं। सम्यग्दर्शन के अभाव में न तो ज्ञान सम्यक् होता है और न चारित्र ही। इसीलिए सम्यग्दर्शन को मोक्षमहल की सीढ़ी कहा गया है, सम्यग्दर्शन से ही सम्यक् चारित्र का तेज प्रकट होता है। सम्यग्दर्शन रहित चारित्र उस अन्धे व्यक्ति की तरह है जो निरन्तर चलना तो जानता है पर लक्ष्य का पता नहीं। लक्ष्यविहीन यात्रा, यात्रा नहीं भटकन है। इसीलिए तत्त्वार्थसूत्रकार ने चारित्र निरूपक चरणानुयोग का प्रारम्भ सम्यग्दर्शन से किया है। एक साधक को प्रत्येक समय सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की भावना करनी ही चाहिए जिससे वह अपने इष्ट लक्ष्य को पा सके। अब प्रश्न आता है- सम्यग्दर्शन क्या है? इसकी जीवन में क्या सार्थकता है? इसे समझना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसे समझे बिना हमारे मूल लक्ष्य की प्राप्ति असम्भव है। आध्यात्म की साधना करने वाला अन्य विषय समझे या न समझे, किन्तु सम्यग्दर्शन के महत्त्व को समझना उसके लिए अत्यन्त आवश्यक है। जिसने सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लिया उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया। __इस चेतन आत्मा ने अनन्त बार स्वर्ग सुख भोगा भू-मण्डल पर राजेश्वरी वैभव पाया किन्तु सम्यग्दर्शन के अभाव में आत्मा को नहीं पा सका। नरक के दुःख व स्वर्ग के सुख आत्मा को पवित्रता प्रदान नहीं कर सकते। आत्मपवित्रता का कारण है सम्यग्दर्शन। यदि आप भी इस आत्मसाधना में प्रवेश करना चाहते हैं, आत्मदेव की पूजा आराधना करना चाहते हैं एवं आत्म मन्दिर में प्रवेश करना चाहते हैं, तो इन सबका प्रवेश द्वार है सम्यग्दर्शन।
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