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________________ पुरुषार्थ या कर्म एक समय की बात है कि कर्म और पुरुषार्थ में वाद-विवाद हो जाता है। कर्म कहता है कि मैं बड़ा हूँ, पुरुषार्थ कहता है कि मैं बड़ा हूँ। निर्णय इन्द्र के पास चला जाता है। इन्द्र विचार करने लगता है कि मैं कर्म के कारण ही वर्तमान में सुख भोग रहा हूँ। अच्छा पुरुषार्थ किया था तो ऐसा कर्म बना लिया। तब इन्द्र कहता है कि तुम्हारा फैसला मुझसे नहीं होगा। कर्म और पुरुषार्थ वापिस आ जाते हैं। उन्हें रास्ते में एक गरीब बूढ़ा बैठा मिलता है। कर्म कहने लगता है कि मैंने कर्म से इसे दुःखी बनाया है। पुरुषार्थ कहता है कि बूढ़े बाबा तुम जंगल में जाओ, वहाँ से सुगंधमयी चन्दन लाओ और राजा को भेंट करो। बूढ़ा व्यक्ति चंदन लाकर राजा के पास ले जाता है। राजा प्रसन्न होकर उसे सोने का हार दे देता है। बूढ़ा प्रसन्न हो घर वापिस आ जाता है। बूढा हार को एक खूटी पर टाँग देता है। इतने में एक चील आती है और उसे उठाकर ले जाती है। अब कर्म कहता है कि-'कहो पुरुषार्थ! तुम बड़े हो या मैं बड़ा हूँ?' पुरुषार्थ बोला-'अभी मेरी क्रिया शेष है।' पुरुषार्थ फिर बूढ़े को राजा के पास भेजता है। राजा से बूढा कहता है कि हार तो चील ले गयी, मैं क्या करूँ? राजा एक अशर्फी की थैली उस बूढ़े व्यक्ति को दे देता है। बूढा व्यक्ति इस बार घर आकर चूल्हे की राख के ढेर में उस अशर्फियों की थैली को छुपा देता है। थोड़ी देर में पड़ौसिन राख लेने आती है और वह अशर्फियों की थैली उसी राख के साथ चली जाती है। अब कर्म उपहास करते हुए बोला-'मैं बड़ा हूँ कि नहीं, अब बोलो।' पुरुषार्थ कहता है कि अभी खेल खत्म नहीं हुआ है। वह बूढ़े व्यक्ति को पुनः राजा के पास भेजता है। राजा इस बार एक मूल्यवान अँगूठी दे देता है। बूढ़ा व्यक्ति उसे बड़ी सावधानी से अपने घर ले जा रहा था, किन्तु रास्ते में नींद आ जाने से वह अंगूठी नदी में गिर जाती है। बूढा व्यक्ति इस बार भी खाली हाथ हो जाता है। अब कर्म कहता है कि देखो पुरुषार्थ-'मैंने अपना बड़ापन दिखा दिया, तूने अपना सब जोर दिखा दिया, अब भी तुझे मेरे बड़ेपन पर विश्वास नहीं है क्या?' अब पुरुषार्थ कहता है कि-अभी 'धर्म' बाकी है। वह ऐसा पुरुषार्थ है कि क्षण भर में तुम्हें भगा सकता है। अब पुरुषार्थ बूढ़े से कहता है कि तुम प्रतिदिन पूजा किया करो, साधु की सेवा किया करो, स्वाध्याय किया करो, कुछ त्याग, संयम आदि का पालन करो, इस प्रकार तुम धर्म में समय व्यतीत करना शुरू कर दो। अब बूढ़ा व्यक्ति सब क्रिया करने लगता है। अत: वह धर्म के बल से अपने पाप कर्म काटना प्रारंभ कर देता है। एक दिन बूढ़ा व्यक्ति अपनी स्त्री से कहता है कि खाना बनाना है, इसलिए तुम पानी नदी से ले आओ, मैं वृक्ष से लकड़ी काटकर लाता हूँ। दोनों चले जाते हैं। स्त्री नदी पर पहुँचती है तो उसे नदी के किनारे अँगूठी पड़ी हुयी मिल जाती है। अंगठी और पानी वह घर ले आती है। इधर बूढा व्यक्ति वृक्ष पर चढता है तो उसे वहाँ हार 36
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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