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और कर्मों के वशीभूत होकर नाना योनियों में भ्रमण करेंगे। न केवल मनुष्य बल्कि प्रत्येक जीव जैसा परिणाम करता है, जैसा भाव करता है उसी के अनुसार वह कर्म बन्ध या मुक्त होता है। यदि स्वभाव की ओर उन्मुख होता है तो कर्मों से मुक्त हो जाता है, किन्तु यदि पर वस्तओं में अपनी परिणति करता है तब कर्म बन्ध करता है, शुभ या अशुभ जैसी भी उस समय स्थिति हो। इन कर्मों के अनुरूप ही वे उदय में आते हैं, किन्तु यदि यह वर्तमान में शुभ प्रवृत्ति की ओर उन्मुख होता है तब पूर्व के अशुभ कर्मों के फल में भी शिथिलता आ जाती है, इसी प्रकार यदि वह वर्तमान में अशुभ प्रवृत्ति कर रहा है तो पूर्व किये शभ कर्मों के फल में भी शिथिलता आ जाती है। इस बात को समझने के लिए निम्न दृष्टान्त समझना होगा।
कर्मानुसार फल किसी नगर में दो भाई साथ-साथ रहते थे। दोनों के स्वभाव में बहुत अन्तर था। एक भाई चोरी आदि अशुभ कर्म किया करता था, जबकि दूसरा भाई जिनेन्द्र भगवान की भक्ति आदि शुभ कर्मों में अपना समय बिताता था। बहुत समय व्यतीत हो गया। दोनों अपने-अपने कार्य करते रहे। एक दिन एक भाई चोरी करने जाता है, दूसरा भाई भी उसी समय घर से पूजा आदि करने के लिए निकलता है। रास्ते में पुजारी अचानक ठोकर खाकर गिरता है, पूजा की सामग्री भी बिखर जाती है। वह घायल हो जाता है। उसी समय अचानक उसकी दृष्टि अपने चोर भाई पर पड़ती है। देखता है कि वह नीचे से एक थैली उठा रहा है। यह थैली अशर्फियों से भरी थी। चोर भाई बहुत प्रसन्न हो घर लौट आता है। ___ अब पुजारी विचार करता है कि मैं दिन-रात अच्छे कार्य करता हूँ, लेकिन फिर भी ठोकर खाकर गिरा और घायल हो गया। किन्तु मेरा भाई चोरी आदि पाप करता आ रहा है फिर भी उसे वहीं से अशफियों की थैली मिल गयी। यह सोच वह आगे मन्दिर नहीं जाता और वापिस अपने घर लौटने लगता है।
रास्ते में उसे एक अवधि ज्ञानी मुनिराज के दर्शन होते हैं। वे पूछते हैं कि तुम वापिस क्यों आ रहे हो? पुजारी सम्पूर्ण वृतान्त कह देता है। अब मुनिराज कहते हैं कि-'अगर तुम जीवन में पूजा नहीं करते तो तुमने पूर्व में इतना अशुभ कर्म बांध लिया था कि आज तुम्हें फाँसी लगती, किन्तु तुम्हारा वह कर्म आज मात्र ठोकर बनकर रह गया। तुम्हारा भाई जो चोरी करता है वह यदि जीवन में चोरी न करता तो उसने पूर्व में इतना शुभ कर्म का बन्ध कर रखा था कि उसे आज अपार धन की प्राप्ति होती, किन्तु उसका शुभ कर्म क्षीण हो गया, मात्र अशर्फियों की थैली ही मिली।
मुनिराज के वचन सुनकर दोनों गृहस्थोचित शुभ कार्यों में लग गए।
उपर्युक्त दृष्टान्त से यह बात सिद्ध हो जाती है कि जो जैसा पुरुषार्थ करता है उसे तदनुरूप वैसा ही फल मिलता है। यही कर्म सिद्धान्त है।
कर्म बड़ा है या पुरुषार्थ-इस तथ्य को समझने के लिए निम्न दृष्टान्त को समझना होगा
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