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चार अघातियाकर्म-आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय की दलीलें। आयु कर्म-आयु कर्म कहता है, मेरे चार भेद हैं, मैं उत्कृष्ट में 33 सागर तक सत्ता में रह सकता
हूँ, मैं जेल का काम करता हूँ। नाम कर्म-नाम कर्म कहता है, मेरे 93 भेद हैं, मैं उत्कृष्ट में 20 कोडाकोडी सागर तक सत्ता में
रह सकता हूँ, मैं चित्रकार का काम करता हूँ। गोत्र कर्म-गोत्र कर्म कहता है, मेरे 2 भेद हैं, मैं उत्कृष्ट में 20 कोडाकोडी सागर तक सत्ता में रह ।
सकता हूँ, मैं कुम्भकार का काम करता हूँ। वेदनीय कर्म-वेदनीय कर्म कहता है, मेरे 2 भेद हैं, मैं उत्कृष्ट में 30 कोडाकोडी सागर तक सत्ता ॥
__ में रह सकता हूँ, मैं शहद लिपटी तलवार का काम करता हूँ (जैसे-तलवार चाटने
पर तो मीठी लगे लेकिन जीभ को काट देती है)। || 1. ज्ञानावरण-ज्ञानावरण कर्म कहता है कि मैंने बाहुबली जैसे महापराक्रमी को एक साल
____ तक खड़े रखा केवलज्ञान नहीं होने दिया। 12. दर्शनावरण-दर्शनावरण कर्म कहता है, कि मैंने बड़े-बड़े योगियों को आत्मा के दर्शन
नहीं होने दिये। 3. मोहनीय-मोहनीय कर्म कहता है, मैंने राम जैसे महान पुरुष को लक्ष्मण के मृतक शरीर
को छः मास तक कन्धे पर लेकर घुमवाया। सीता को पत्तों, पहाड़ियों आदि में ढुंढवाया।
उपशमश्रेणी लगाने वाले मुनि को ग्यारहवें गुणस्थान से पहले गुणस्थान में पहुंचाया। 4. अंतराय-अंतराय कर्म कहता है, मैंने आदिनाथ तीर्थंकर को छ: माह तक आहार नहीं लेने
दिया।
5. नामकर्म-नामकर्म कहता है, मैंने अनेकों को गूंगा, बहरा, कुबड़ा, काला, बना दिया। 6. आयु कर्म-आयु कर्म कहता है, मैंने अर्धचक्री, प्रतिनारायण, रावण, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती,
सुभौम चक्रवर्ती और राजा श्रेणिक को नर्क पहुँचाया। 7. गोत्र कर्म-गोत्र कर्म कहता है, मैंने बहुतों को ऊँच नीच पर्याय में डाला। 8. वेदनीय कर्म-वेदनीय कर्म कहता है, मैंने सनतकुमार मुनिराज की देह में सात सौ वर्ष
कुष्ट रोग कराया। मुनि वादिराज के शरीर में 100 साल तक कुष्ट रोग कराया। श्रीपाल जैसे कोटिभट को कोढ़ी बनाकर निकलवाया।
सामान्य-कर्म कहते हैं, मैंने अंजना जैसी सती को 22 साल तक पति से वियोग कराया। सीता जैसी महान सती को रावण के द्वारा अपहरण कराया व शीलभंग का झूठा दोष लगाया। सुकमाल जैसे महान मुनि को स्यालनी के द्वारा भक्षण करवाया।
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