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________________ पुरुषार्थ-पुरुषार्थ के चार भेद हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। पुरुषार्थ से चमकता है किसमत का सितारा। विश्वास करोगे तो जरूर मिलेगा सहारा।। वैसे भोगों का चारों ओर दिखता है बोलबाला। त्याग करोगे तो मिलेगा भव का किनारा॥१॥ कोशिश से धूल में फूल खिल जाता है। कोशिश से मौसम अनुकूल मिल जाता है। अगर समुन्दर की लहरों से हार न मानो। तैरते ही आ कूल मिल जाता है॥२॥ बेमौसम पानी बरसते देखा है। समझदार इन्सान बहकते देखा है। अगर दिन बरे हैं घबरा मत हे भैया। मैंने उजाड़ गुलशनमहकते देखाहै ।।३।। पुरुषार्थ द्वारा कर्मों का प्रतिकार 1. बाहुबली को जब तक कषाय रही, आत्मिक पुरुषार्थ नहीं किया तब तक केवलज्ञान नहीं हुआ। जब कषाय मिटी आत्मिक पुरुषार्थ जागा तुरन्त केवली हुए। 2. राम ने आत्मिक पुरुषार्थ जगाया तुरन्त मोक्ष चले गये। 3. सीता के जीव ने पहले भव में मुनियों को दोष लगाया था। पुरुषार्थ गलत करने के कारण सीता का हरण हुआ। जब सीता ने पुरुषार्थ जगाया, तो स्वर्ग में जाकर प्रतीन्द्र बन गई, अगले भव में मोक्ष चली जाएगी। 4. आदिनाथ ने बैलों के छींका लगाने का उपदेश देकर गलत पुरुषार्थ किया तब अंतराय हुआ, जब आत्मिक पुरुषार्थ जगाया तो मोक्ष को प्राप्त हुए। 5. रावण ने पुरुषार्थ गलत किया इसलिए नरक चला गया। श्रीपाल कोटिभट्ट ने पहले भव में मुनियों को कोढ़ी-कोढ़ी कहकर उनकी निन्दा की, इस कारण उनके शरीर में कोढ हो गया, जब उन्होंने आत्म पुरुषार्थ जगाया तो मोक्ष को प्राप्त किया। 7. सुकमाल को स्यालनी ने खाया, क्योंकि उसने पूर्वभव में अपनी भाभी को लात मारी थी 6. श्री === = 33 )
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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