________________
को एक कोड़ी देने लगे तो वह श्रमिक हाथ जोड़ते हुए बापू से कहता है कि- हे बापू। यह कौड़ी आप अपने पास ही रखिये। यह वृद्धा माँ की पवित्र धरोहर है। सोलह हजार क्या, सोलह लाख या सोलह करोड़ रुपये में भी यह 'कौड़ी' प्राप्त होना दुर्लभ है। इस कौड़ी ने आज मेरे भी पाप धो दिये हैं। गाँधी जी कहते हैं कि मूल्य वस्तु का नहीं, अपितु भाव का होता है। इस प्रकार वह वृद्ध माँ पतित से पावन बन जाती है। त्याग से, दान से जीवन पावन बन सकता है। सर्वस्व समर्पण किये बिना पावन नहीं बना जा सकता। संसार के सभी मानव वाह्य अंग उपांगों की दृष्टि सेतो समान ही होते हैं किन्तु व्यवहार, आचरण एवं भावनाओं की दृष्टि से अनेक प्रकार के होते हैं।
मानव के भेद
(1)
1. सुपारी जैसे- जो अन्दर से कठोर और बाहर से भी कठोर होते हैं।
2.
बेर जैसे-जो ऊपर से नरम और अन्दर कठोर हैं।
3.
बादाम जैसे- जो ऊपर से तो कठोर हैं लेकिन अन्दर नरम हैं।
4. अंगूर जैसे- जो अन्दर से भी नरम हैं और बाहर भी नरम हैं।
(2)
1.
सामान्य मानव - पाक्षिक श्रावक हैं।
2. विशेष मानव - अणुव्रती श्रावक हैं।
3. महामानव - महाव्रती मुनिराज हैं।
4. विशेष महामानव-अरिहंत प्रभु हैं।
(3)
1. तालाब जैसे-जैसे तालाब एक जगह पर ही पड़ा पड़ा समाप्त हो जाता है, उसी तरह मानव भी बिना धर्म किये ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
2. सरिता जैसे - जिस प्रकार सरिता का स्वभाव बहना है और समुद्र में मिलने की इच्छा रहती है, जीवों को स्वच्छ जल का पान कराती है। उसी प्रकार सरिता जैसे मनुष्य स्वयं तो मोक्ष पथ पर चलते हैं और अन्य जीवों को भी उसी का उपदेश देते हैं।
23