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हुआ और वहाँ भी बहुत दुःख उठाये जैसे- पृथ्वी हुआ, खोदा गया, अग्नि हुआ, बुझाया गया, जल और वायु हुआ तो विलोया गया और वनस्पति में रौंदा गया आदि इसके बाद
दुर्लभ लहि ज्यौं चिंतामणि, त्यौं पर्यायलही त्रसतणी । लट पिपील अलि आदि शरीर, धर-धर मर्यो सही बहु पीर ॥
जिस प्रकार चिंतामणि रत्न बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है, उसी प्रकार पुण्योदय से 2 हजार सागर त्रस पर्याय के लिए मिले उसमें भी दो इन्द्रिय बने, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय बने । कभी चावलादि से छान - छानकर सड़कों पर डाल दिये गये पैरों के नीचे कुचले गये, नालियों में सड़कर मरे, भँवरादि भी बने तो घ्राण इन्द्रिय के कारण मरण को प्राप्त हुए इस प्रकार विकलत्रय में भी बहुत पीड़ा सहन की इसके बाद
कबहूँ पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो । सिंहादिक सैनी है क्रूर, निर्बल पशु हति खायेभूर ॥
कभी पंचेन्द्रिय पशु भी हुआ तो मन नहीं होने के कारण हिताहित का ज्ञान न होने के कारण अज्ञानी रहा, कभी मन सहित भी हुआ तो सिंहादिक क्रूर पशु होकर अपने से निर्बल पशु को ग्रास बनाया। अरे! अरे !! कितना पाप किया फिर इस पाप के कारण
कबहूँ आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अति दीन। छेदनभेदन भूखअरु पियास, भार वहन हिम-आतप त्रास ॥
गाय,
अरे ! अरे !! कभी स्वयं बलहीन हुआ तो, बलवान सिंहादिक पशु द्वारा खाया गया, कभी भैंस, घोड़ा, गधे बनें तो डंडो से मार खानी पड़ी, समय पर चारा म मिला, पानी न मिला, गर्मी और सर्दी की बाधा बार-बार सहनी पड़ी, इस प्रकार 62 लाख योनि तिर्यंचों में बितायी लेकिन वहाँ भी पावन बनने का रास्ता दृष्टिगत नहीं हुआ
ar-बन्धन आदिक दुःख घने, कोटि जीव तैं जात न भने । अति संक्लेश भाव तै मर्यो, घोर श्वभ्र सागर पर्यो ॥८॥
तहाँ भूमि परसत दुःख इसो, बिच्छू सहस डसौ नहि तिसो । तहाँ राध-शोणित वाहिनी, कृमि-कुल कलित देह दाहिनी ॥९॥
अरे! पशु गति में संक्लेश भाव के कारण नरकों में गया। नरकों में उपपाद जन्म होता है वहाँ बिलों में उत्पन्न हुआ तो फुटबाल की तरह योजनों तक उछला बहुत दुःखी हुआ, अरे! भूमि पर पड़े तो इतना दुःख हुआ कि एक हजार बिच्छूओं ने मिल काट लिया हो, वहाँ नदियाँ कैसी हैं? खून और पीव की भरी हुई उसमें छोटे-छोटे कृमि और देह का नाश कर देने वाले मगरमच्छ तैरते रहते हैं।
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