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भावार्थ
योनियों के मूल भेद गुणों के आधार पर सामान्य रूप से नौ होते हैं- सचित्त, अचित्त, सचित्ताचित्त; शीत, उष्ण, शीतोष्ण; संवृत (ढकी), विवृत ( खुली), व मिश्र संवृतविवृत । प्रत्येक योनि में एक-एक गुण होता है। जैसे- सचित्त, शीत, संवृत हो या अचित्त, शीत, संवृत हो इत्यादि । इसके 84 लाख भेद गुणों की तरतमता की अपेक्षा से होते हैं जो इस प्रकार हैं
1. नित्यनिगोद साधारण वनस्पति जीवों की 2. इतरनिगोद साधारण वनस्पति जीवों की
3. पृथ्वीकायिक जीवों की
4. जलकायिक जीवों की
5. अग्निकायिक जीवों की
6. वायुकायिक जीवों की
7. प्रत्येक वनस्पति जीवों की
8. दो इन्द्रिय जीवों की
9 तीन इन्द्रिय जीवों की
10. चार इन्द्रिय जीवों की
11. देवों की
12. नारकियों की
13. पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की 14. मनुष्यों की
7
7
7
7
7
7
10
2
2
2
4
4
4
14
कुल चौरासी लाख
लाख
44
44
18
44
44
44
44
योनियाँ
44
44
46
64
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44
44
44
44
"
44
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14
योनियां
इस प्रकार चार गति एवं चौरासी लाख योनियाँ में बहुत भ्रमण किया। अरे! भाई फिर भी नहीं चेतता, अरे क्या इन गतियों के दुःख की खबर है, शायद नहीं, क्योंकि पता होता तो फिर पावन बनने का उपाय करता, कैसा मस्त हो रहा है विषयों में। ले सुन उन दुःखों की कहानी जिनको तू अभी-अभी भोग कर आया है
एक श्वास में अठदशबार, जन्मयौ-मरयो भर्यो दुःखभार । निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक बनस्पति थयो ।
अरे! अरे !! देखो निगोद में एक श्वांस में 18 बार जन्म और 18 बार मरण के दुःख सहते रहे, कुछ पुण्य का उदय आया तो निगोद से निकलकर व्यवहार राशि में आया तो पाँच स्थावर