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________________ में अनेक रूपों में धारण किया जा सकता है। भोगी मनुष्य अविवेकी होता है, इसीलिए जीवन में वह संयम नहीं धारण कर पाता। भोगों में अपने बहुमूल्य जीवन के क्षणों को खोता रहता है, जीवन के किसी मोड़ पर जब उसे अपनी गलती का अहसास होता है तो बहुत पश्चाताप करता है, रोता है। कहा भी है कि जिनके हाथों में संयम की पतवार है । उनके हाथों में शूली का नहीं फूलों का हार है ।। अरे ! भोगी परमात्मा को क्या जाने । जिनको आत्मा से नहीं भोगों से प्यार है । मानव को अपना जीवन असंयम में नहीं खोना चाहिए, यह बात निम्न दृष्टान्त द्वारा भी समझी जा सकती है। रत्नों की कीमत एक खेत में बल्ली गाड़ने के लिए एक गड्ढ़ा खोदा गया । यह खेत एक किसान का था । यहाँ किसान को एक कलश रत्नों का भरा हुआ मिलता है। किसान यह जानकर बहुत खुश होता है कि अब मुझे पक्षियों को उड़ाने के लिए कंकड़-पत्थर इकट्ठे नहीं करने पड़ेंगे। अतः वह पक्षी उड़ाने में उनका प्रयोग करने लगा। एक-एक करके वह रत्न फेंकता जाता और पक्षियों को, चिड़ियों को उड़ाता जाता। वहीं पास में एक नदी थी, वे लाल उस नदी में गिरते जाते । एक दिन एक लाल किसी तरह उसकी नदी किनारे बनी झोंपड़ी में गिरा। इसी समय उस किसान की पत्नी घर से रोटी लेकर खेत पर आती है और उस लाल की चमक को देखकर बहुत प्रसन्न होती है, सोचती है, घर पर बच्चे इससे खेल खेल लेंगे। अतः वह उसे उठाकर अपने घर ले जाती है। घर पर ले जाकर वह लाल खेलने के लिए अपने बच्चों को दे देती है। एक दिन नगर सेठ किसान के घर आता है तथा वह बच्चों को लाल से खेलता हुआ देखता है वह विचारने लगता है कि यह लाल इन बच्चों को किसने दिया। वह बच्चों की माँ को आवाज लगाता है। पूछता है-' बच्चे ये क्या ले रहे हैं?' बच्चों की माँ कहती है कि- 'यह पथरी खेत में पड़ी थी, सोचा बच्चों के लिए सुन्दर रहेगी, अतः इसे उठाकर मैं घर ले आई, और बच्चों के खेलने के लिए दे दी। आपके मतलब की हो तो ले जाइये।' सेठ अणुव्रती थे। वे बोले- 'कीमत बताओ, ऐसे नहीं लेंगे। बच्चों की माता बोली- 'कीमत कुछ नहीं है, यदि आपको कुछ देना ही है तो बच्चों को दो-चार पैसों की कुछ चीज दिला दीजिए।' सेठ जी कहते हैं। कि-'ऐसे नहीं, किसी को हमारे साथ भेजो।' सेठ जी के साथ वह किसान की पत्नी खाली हाथ 397
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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