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________________ तो अन्य पाँचों इन्द्रियों पर नियन्त्रण हो जाता है। मन की दौड़ सबसे तेज होती है। गृहस्थ को अपना मन स्थिर करना चाहिए। (ब) प्राणी संयम - पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पति कायिक- ये पाँच प्रकार के एकेन्द्रिय जीव, स्थावर जीव कहलाते हैं। दो इन्द्रिय जीव, तीन इन्द्रिय जीव, चार इन्द्रिय जीव और पाँच इन्द्रिय जीव-ये चार प्रकार के जीव त्रस जीव कहलाते हैं। इन स्थावर और त्रस जीवों के प्राणों की रक्षा करना, ऐसे कार्य नहीं करना जिस कारण इन्हें कष्ट पहुँचे, उसे प्राणी संयम कहते हैं। संयम (अ) इन्द्रिय संयम 1. स्पर्शन इन्द्रिय संयम 2. रसना इन्द्रिय संयम 3. घ्राण इन्द्रिय संयम 4. चक्षु इन्द्रिय संयम 5. कर्ण इन्द्रिय संयम 6. मनेन्द्रिय संयम (ब) प्राणी संयम स्थावर 7. पृथ्वीकायिक संयम 8. जलकायिक संयम 9. अग्निकायिक संयम 10. वायुकायिक संयम 11. वनस्पतिकायिक संयम त्रस 12. दो इन्द्रिय आदि इस प्रकार संयम के मूल भेद दो इन्द्रिय संयम और प्राणी संयम तथा उत्तर भेद बारह (छह इन्द्रिय संयम के और छह प्राणी संयम के) हो जाते हैं। यह बारह प्रकार का संयम गृहस्थ को अपनी भूमिकानुसार धारण करना चाहिए। आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि सकलं विकलं चरणं तत्सकलं सर्वसंगविरतानाम् । अनगाराणां विकलं सागाराणां ससंगानाम् ॥ 386 - रत्नक. श्राव.50 गृह-कुटुम्ब आदि समस्त परिग्रह के त्यागी और अपने शरीर से भी निर्ममत्व रखने वाले मुनिराज सकल चारित्र - संयम को धारण करते गृहस्थ, जो गृह, परिवार धन आदि रखते हैं, वे विकल चारित्र - संयम को धारण करते हैं। सकल अर्थात् संपूर्ण या सर्वदेश और विकल अर्थात् आंशिक या एकदेश की अपेक्षा से संयम दो प्रकार का हो जाता है। दूसरे शब्दों में संयम को महाव्रत रूप, समिति, गुप्ति रूप में मुनिराज पालते हैं और अणुव्रत तथा प्रतिमाओं के रूप में गृहस्थ पालते हैं।
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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