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________________ महाव्रतों के सन्दर्भ में पूर्व में चर्चा हो चुकी है, आज अणुव्रत के सन्दर्भ में विस्तृत चर्चा करेंगे। अणुव्रत : श्रावक जो सद्गृहस्थ संयम को धारण करता है वह 'श्रावक' कहलाता है। श्रावक तीन अक्षरों से मिलकर बना है। श्रा+व+क श्रावक " श्रा" अर्थात् जो गृहस्थ " श्रद्धावान्" हो; "व" अर्थात् जो गृहस्थ "विवेकवान्" हो; और "क" अर्थात् जो गृहस्थ "क्रियावान्" हो, उसे श्रावक कहते हैं। कम अधिक संयम धारण करने की अपेक्षा श्रावक के निम्न तीन भेद किये जाते हैं (1) पाक्षिक श्रावक; (2) नैष्ठिक श्रावक; (3) साधक श्रावक । (1) पाक्षिक श्रावक - जो श्रावक अष्टमूलगुणों का धारक हो तथा सात व्यसनों का त्यागी हो, बाइस अभक्ष्य का सेवन न करता हो, देवदर्शन करने का नियम हो, रात्रि भोजन करने का त्याग हो, छना पानी प्रयोग करता हो एवं जीव दया करता हो वह श्रावक पाक्षिक श्रावक कहलाता है। आठ मूलगुण-आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि मद्यमांसमधु त्यागैः : सहाणुव्रतपञ्चकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमाः । - रत्नकश्राव, 66 शराब, माँस और शहद का त्याग और पाँच अणुव्रतों का पालन-ये आठ मूलगुण गृहस्थों के लिए कहे गये हैं। आचार्य सोमदेव के अनुसार- मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर फलों का त्याग, गृहस्थों के आठ मूलगुण होते हैं। मद्यमांसमधुत्यागाः सहोदुम्बरपञ्चकैः । अष्टावेते गृहस्थानामुक्ताः मूलगुणाः श्रुतेः ॥ चारित्रसार में आचार्य चामुण्डराय ने लिखा है - यशस्तिलक-उपा, 270 हिंसासत्यास्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् । द्यूतान्मांसान्मद्याद्विरति- गृहिणोऽष्टसन्त्यमी मूलगुणाः ॥ मद्य, माँस और द्यूत तथा स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल अब्रह्म और स्थूल 387
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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