SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6. कूलर, पंखा ए.सी. आदि लगाना । 7. हेलोजन आदि लगाना । 8. कछुआ छाप अगरबत्ती या गुडनाइट लगाना । 9. रुपया पैसा देना । 10. रात्रि को या दिन में तौलिये से शरीर को पौंछना । ये सब कार्य साधु की आत्मसाधना में बाधक होने के कारण मोक्षमार्ग के विरुद्ध हैं। गुरू उपासना वही कहला सकती है जो मोक्षमार्ग में साधक हो । अतः गृहस्थों को उपर्युक्त अकरणीय कार्य नहीं करना चाहिए। गुरू के समक्ष त्याज्य क्रियाएँ-कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें गुरू के समीप नहीं करना चाहिए | क्योंकि इनके करने से पापबन्ध होता है। पं. आशाधर जी सागरधर्माऽमृत में लिखते हैं कि निष्ठीवनमवष्टम्भं जृम्भणं गात्रभंजनम् । असत्य भाषणं नर्म हास्य पादप्रसारणम् ॥ अभ्याख्यानं करस्फोट करेण करताडनम् । विकारमंगसंस्कारं वर्जयेद्यतिसन्निधौ ॥ अर्थात् थूकना, गर्व करना, झूठा दोष आरोपण करना, हाथ ठोकना, खेल खेलना, हँसना, पैर फैलाकर बैठना, जंभाई लेना, शरीर मोड़ना, ताली बजाना, शरीर के अन्य विकार करना, शरीर संस्कारित करना आदि क्रियाएँ गुरु के समीप नहीं करनी चाहिए। ये सब क्रियाएँ पाप-बन्ध के कारण हैं। उपर्युक्त गुरु अर्थात् आचार्य, उपाध्याय गुरु ही हमें अरहंत भगवान की पहचान करवाते हैं, इस अपेक्षा से गुरू भगवान तुल्य हैं। जिस प्रकार सिद्ध भगवान बड़े हैं, किन्तु अरहंत भगवान हमें समवशरण में अपनी दिव्यवाणी से सदुपदेश देते हैं, इस उपकार की अपेक्षा से हम णमोकार मंत्र में सबसे पहले उन्हें ही नमस्कार करते हैं। इसी प्रकार गुरू की स्थिति है, जो सदा जीवों का कल्याण चाहता हुआ स्वकल्याण करता है। मोक्षमार्ग में गुरू के अभाव में कोई भी मुमुक्षु एक कदम नहीं चल सकता। गुरू सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र से युक्त धर्म का उपदेश देने वाले, लोभ रहित तथा भव्यों को तारने वाले तथा स्वयं भी इस संसार से पार होने वाले होते हैं। यह सद्गुरू की बात है। इसके विपरीत जो गुरू स्वयं संसार समुद्र में डूब रहा हो, वह अन्य प्राणियों को भवसागर से पार नहीं उतार सकता। 372
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy