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इस प्रकार हम देखते हैं कि एक शूकर वसतिका दान देकर तथा गुरू पर हमला होते देख अपने प्राण देकर भी उनकी रक्षा करता है। यही गुरू उपासना है। पशुओं से भी मनुष्य को शिक्षा लेना चाहिए।
उपासना का फल जैनदर्शन में पंचपरमेष्ठी की पूजा-अर्चना की जाती है। पंचपरमेष्ठी की पूजा का फल नियम से संसार भ्रमण का अन्त है अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति। पंचपरिमेष्ठियों में आचार्य, उपाध्याय और साधु गुरू माने जाते हैं। अतः जो सद्गृहस्थ गुरु उपासना करता है वह परम्परा से स्वर्ग आदि गतियों को प्राप्त होता हुआ, अपना कल्याण कर लेता है। इसलिए गुरू उपासना को गृहस्थ के षट् आवश्यक में दूसरा स्थान प्राप्त है। ___ गुरू उपासना से साक्षात् और परोक्ष रूप से सुख-शान्ति और निराकुलता प्राप्त होती है। 'गुरू उपासना कैसे करें' के अन्तर्गत जितने भी दृष्टान्त दिये गये हैं, उनसे यही बात सिद्ध होती है कि जिसने गुरू की सेवा सुश्रूषा की वही सुखी रहा और जिसने ऐसा नहीं किया वह संकटों में फंस गया। उसका अध:पतन हो गया। जैसे- भद्रबाहु स्वामी की आज्ञा मानने वाले भीषण अकाल से बच जाते हैं और इसके विपरीत उनकी आज्ञा न मानने वाले मुनि अकाल की चपेट में आ जाते हैं और धर्म से भी च्युत हो जाते हैं। इसी प्रकार राजा बज्रगंध और रानी श्रीमती का दृष्टान्त भी यह सिद्ध करता है कि आहार दान, गुरू उपासना का फल मोक्ष है। जो किसी साधु की आत्मसाधना में सहायक बनता है, वह आने वाले समय में नियम से आत्मसाधना में रत होता हुआ अपना कल्याण करता है। यही गुरू उपासना का फल है। गुरू तो तरन-तारन होते हैं। स्वयं भी पार उतरते हैं और अन्यों को भी संसार से पार उतार देते हैं। ऐसी अपूर्व महिमा होती है गुरू की। किसी कवि ने कहा है कि
अग्नि लगी आकाश में, झर-झर पड़े अंगार।
सन्त न होते संसार में, तो जल जाता संसार॥ निम्नप्रकार से गुरू की सेवा-सुश्रूषा करना गुरू उपासना नहीं है| 1. आहार-विहार में बैंड-बाजे बजवाना। 2. किसी भी प्रकार का परिग्रह देना। 3. गुरु का जन्मदिन या दीक्षा-दिन मनाना। 4. आरती उतारना। 5. टेपरिकार्डर, मोबाइल फोन आदि देना।
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