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सुनना किसको था, किसी ने भी संन्यासी की बात पर ध्यान नहीं दिया। इस तरह संन्यासी चला जाता है। ____ अब वह भिखारिन कहती है-"तुम लोग जब इनसे वचनबद्ध थे फिर इन्हें निकाल क्यों दिया? कल मेरे साथ भी ऐसा ही करोगे। ऐसे लोगों के यहाँ मैं भी नहीं रहना चाहती।" ।
सन्यासी और भिखारिन के रूप में जाते-जाते लक्ष्मी विष्णु से पूछती है-"क्यों! देख लिया न, कौन अधिक प्रिय है?" लोग गुनगुनाने लगते हैं कि- दुविधा में दोनों गये; माया मिली न राम।
इस दृष्टान्त से यह बात सिद्ध हो जाती है कि-जहाँ सन्त निवास करते हैं, वहाँ लक्ष्मी पीछे-पीछे चलती है। जो धन की ओर नहीं देखता और गुरु की सेवा में लगा रहता है, उनको वसतिका आदि में बहुत मान-सम्मान से ठहराता है, उसे सब कुछ मिलता है, किन्तु इसके विपरीत जो धन के लोभ में साधु की विराधना करता है, वह बिल्कुल खाली हाथ हो जाता है। न लौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है और न अलौकिक वस्तुओं की ही। इसीलिए धन कहता है कि
सन्त न ठहरें जब यहाँ, मैं क्यूँ लूँ विश्राम।
दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम॥ गुरुओं की उपासना अपने जीवन में जिसने नहीं की, उसका जीवन व्यर्थ है।
गुरुओं पर कभी-कभी दुष्ट जीवों द्वारा आक्रमण हो जाया करता है। उस स्थिति में उनके प्राणों को अपने प्राण देकर भी बचाना गुरु उपासना है। मनुष्य ही नहीं तिथंचों तक के ऐसे भाव होते हैं कि हम गुरु के प्राणों की रक्षा करें। इस बात का एक अनूठा दृष्टान्त जैनग्रन्थों में शूकर और सिंह का मिलता है।
शूकर और सिंह एक मुनिराज जंगल में एक गुफा में बैठे आत्मा में लीन हैं। तत्त्व चिन्तन चल रहा है-कहाँ पर क्या होने वाला है। कोई पता नहीं और किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं। उनके मस्तिष्क में चिंतन चल रहा है कि मैं शुद्ध बुद्ध एक आत्मा हूँ। निष्कलंक, निरंजन, ज्ञान, दर्शन, रूप, उपयोग के अलावा अणुमात्र भी मेरा नहीं है। इस प्रकार शुद्धोपयोगमयी भावना भा रहे हैं। इधर एक घटना घटती है। ___ कई दिनों का भूखा एक भयंकर सिंह दहाड़ता हुआ आ रहा है, गुफा की ओर, उसने देखा कि अभी-अभी एक सुर्ख लाल व्यक्ति गुफा के अन्दर गया है। बहुत अच्छा शिकार है, मेरी सम्पूर्ण भूख मिट जायेगी, मैं. तृप्त हो जाऊँगा। सिंह दहाड़ता हुआ उस गुफा की ओर दौड़ता है।
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