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________________ चौके में नहीं करने योग्य कार्य 1. शोर, अनावश्यक बातें, जल्दबाजी व भीड़-भाड़ न करें। 2. प्रकाश व हवा को नहीं रोकना चाहिए एवं साधु को घेरकर आहार नहीं देना चाहिए। 3. अस्वस्थ, बाल, वृद्ध व अनजान व्यक्ति तथा 8 वर्ष से कम उम्र वालों से, आहार नहीं दिलवाना चाहिए। 4. अतिथि के आनेपर कोई आरम्भ अर्थात् भोजन आदि नहीं बनाना चाहिए। 5. अशद्ध वस्त्र व अशद्ध सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग नहीं करना चाहिए। 6. महिलाओं के बाल खुले न हों तथा वस्त्र जमीन को न झाड़ रही हों, यह भी ध्यान रखना चाहिए। 7. मौन से आहार दे, संकेतों में कार्य करें, जिससे मुख से अनावश्यक पदार्थ न निकले। 8. चौके में पंखा, लाइट का प्रयोग भोजन तैयार होने से लेकर आहार देने पर्यंत तक कदापि न करें। पंखे में आहार बनाना ठीक नहीं है। हिंसा दोष लगता है। 9. चौके में शंख, सीप, कौड़े आदि अपवित्र वस्तुओं द्वारा सजावट नहीं करनी चाहिए। 10. पड़गाहन से पूर्व पुनः चौका का निरीक्षण कर लें, कहीं कोई अपवित्र बाल, वस्तु, जीव, मृत-जीव आदि न पड़ा हो। उपर्युक्त प्रकार से आहार देना गुरु उपासना करना माना जाता है। निम्न प्रकार से भी गुरु उपासना होती है वसतिका बनवाकर- सद् श्रावक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी शक्ति के अनुसार साधु को ठहराने के लिए वसतिका का निर्माण करे, जो उनके रहने के अनुकूल हो। धन का लोभ नहीं करना चाहिए। धर्म रहेगा तो धन स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा। यह बात निम्न दृष्टान्त से स्पष्ट हो जाती है माया मिली न राम एक समय की बात है कि विष्णु और लक्ष्मी में विवाद छिड़ जाता है, कि कौन अधिक जनप्रिय है। बस इस बात को परखने के लिए दोनों मनुष्य लोक में आ जाते हैं। विष्णु एक सन्यासी का वेश धारण करते हैं और एक सेठ के सुन्दर गृह में बने सन्त निवास में स्थिर हो जाते हैं। प्रतिदिन प्रवचन आदि होने लगते हैं, जनता आने लगती है और भीड बढ़ने लगती है। यह देखकर सेठ-सेठानी और उनकी पुत्र एवं पुत्रवधु सब अपने भाग्य को सराहने लगते हैं। 367
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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