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________________ 4. आहार देते समय महिलाओं-पुरुषों को अपने हाथ सिर, शरीर के किसी अंग व वस्त्रों ___ को नहीं छूना चाहिए। यदि छू जाये तो प्रासुक जल से धो लें। 4. इसके अतिरिक्त दातार में निम्न गुण भी होना चाहिए1. श्रद्धावान्-पात्र को रत्नत्रय का आधार समझकर उसपर पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। यह श्रद्धा गुण कहलाता है। 2. भक्तिवान्-पात्र के गुणों में प्रीति रखते हुए उनकी प्रशंसात्मक स्तुति करना, भक्ति गुण है। 3. संतोषी-अतिथि यदि अपने घर पर नहीं आयें तथा आहार देने को न मिल रहा हो तो खेद-खिन्न नहीं होना चाहिए और सन्तोष धारण करना चाहिए। 4. विवेकवान-अतिथि की तात्कालिक स्थिति देखकर, बाल, वृद्ध, शिक्षाशील, तपस्वी, आदि के अनुसार व देशकाल व स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए क्रमबद्ध आहार देना, विवेक गुण है। 5. अलोलुप-आहार आदि दान देकर इसके फल की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। उदार भाव से अतिथि का आहार-सत्कार करना चाहिए। 6. क्षमाशील-जब किसी कारण चौके में आहार न दे पा रहे हो या किसी के द्वारा अंतराय हो जाये तब क्रोध नहीं करना चाहिए। इस स्थिति में क्षमाभाव धारण कर ले। दाताओं से ईर्ष्या आदि नहीं करना क्षमागुण कहलाता है। 7. सामर्थ्य-अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार आहार देना चाहिए। जो क्लेश का कारण बने ऐसा दान नहीं देना चाहिए। 8. ज्ञानवान्-दातार को आहार की वस्तुओं की प्रकृति आदि का ज्ञान होना चाहिए। आहार सादा, पौष्टिक, और सुपाच्य हो। दयावान-दातार को यह भी देखना चाहिए कि अपने तथा किसी अन्य की आत्मा का किसी बात से या किसी कार्य से हनन तो नहीं हो रहा। इस तरह दातार को दयावान होना चाहिए। 10. प्रसन्नता-दातार को प्रसन्नतापूर्वक अतिथि को आहार देना चाहिए, झुंझलाहट या क्रोध में नहीं। 11. निर्लोभी-दातार को किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए। निर्लोभी दातार ही आहार दान का फल पाता है। 366 -
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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