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विशेष-मुनियों के पादप्रक्षालन पुरुषों को ही करना चाहिए। पहले एक पाँव का घुटने पर्यंत प्रक्षालन करें, तत्पश्चात् अपने हाथ धोयें, पुनः दूसरे पाँव का घुटने पर्यंत प्रक्षालन करना चाहिए। पुनः हाथ धो लेना चाहिए। इस प्रकार शुद्धि करके पूजन करना चाहिए। थाल में मुनियों के पाँव रखकर गंधोदक बनाना और मस्तक पर लगाना, कदापि न करें। प्राचीन काल से यही विधि शुद्धि एवं पादप्रक्षालन की मान्य है। ऐल्लक-क्षुल्लक, आर्यिका के पाद प्रक्षालन नहीं होते। 4. पूजन-पादप्रक्षालन के पश्चात् त्रिरत्न के धारक आचार्यमुनि आदि साधु की पूजा तीन
बादाम से त्रिरत्न का अर्घ चढ़ाकर निम्न प्रकार से करना चाहिएपरमपूज्य 108 श्री (साधु का नाम) महाराज के चरणों में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र अर्घ निर्वपामीति स्वाहा (जो भी आचार्य-मुनि हों उनका नाम लेकर अर्घ चढ़ाएँ। परन्तु जिस संघ में अष्टद्रव्य से पूजा करने का नियम हो वहाँ उसी प्रकार श्रावक को पूजन करना चाहिए। पूजन में दृष्टि, कम से कम आरम्भ करने पर रहना चाहिए। जहाँ
आरम्भ है, वहाँ हिंसा है।) अष्टद्रव्य से पूजा विधि
ॐ ह्रीं 108 श्री ....... मुनीन्द्र! अत्र अवतर, अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं 108 श्री ....... मुनीन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री 108 ....... मुनीन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। 1. ॐ ह्रीं 108 श्री ................ मुनीन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 2. ॐ ह्रीं 108 श्री ................ मुनीन्द्राय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं 108 ........... मुनीन्द्राय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं 108 .......... मुनीन्द्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। 5. ॐ ह्रीं 108 श्री ........... मुनीन्द्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 6. ॐ ह्रीं 108 श्री .......... मुनीन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 7. ॐ ह्रीं 108 श्री .............. मुनीन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 8. ॐ ह्रीं 108 श्री ........ मुनीन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरूसुदीपसुधूपफलार्यकैः।
धवलमंगलगानरवाकुले मम गृहे मुनिनाथ महं यजे॥ ॐ ह्रीं 108 श्री .... मुनीन्द्रचरणकमलाभ्यामनर्घ्यपदप्राप्ताये अयं निर्वपामीति स्वाहा। (108 के बाद जो भी मुनि, आचार्य हों उनका नाम बोलें)
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