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आपके दर्शन, पापों के नाशक, स्वर्ग प्राप्ति के कारण और मोक्ष को देने वाले हैं, इन्द्रिय विजेता जिन भगवन्तों के दर्शन और साधुजन का वन्दन करने से पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, जैसे सछिद्र हाथ में पानी अधिक समय नहीं रुक सकता, इसी प्रकार आपके दर्शन करने से पाप अधि क समय नहीं रुक सकते, पद्मराग मणि की आभा के तुल्य प्रभा वाले वीतराग प्रभु के दर्शन से जन्म-जन्म के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं, जिन भगवान् रूपी सूर्य का दर्शन संसार (मोह) रूपी अन्धकार का नाशक, चित्तरूपी कमल का विकासक तथा समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाला है, जिन भगवान् रूपी चन्द्रमा का दर्शन, सत्धर्म रूपी अमृत का वर्षण करने वाला, जन्म-मरण रूपी दाह का विनाशक, तथा सुख रूपी समुद्र को बढ़ाने वाला है, एवं जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन मात्र से करोड़ों जन्मों के संचित पाप समूह, जन्म-मृत्यु व रोगादि शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
देवपूजा का फल अतुल है। आचार्य सोमदेव सूरि कहते हैं
एकाऽपि समर्थेयं जिनभक्तिर्दुर्गतिं निवारयितुं । पुण्यानि च पूरयितुं दातुं मुक्तिश्रियं कृतिनः ॥
( यशस्तिलक, 2)
केवल जिनेन्द्र भगवान की पूजा भक्ति भी विवेकी श्रावक को दुर्गति के दुःखों से छुड़ा कर सद्गति में पहुँचाती है तथा महान् पुण्यबन्ध कराती है एवं परम्परा से मुक्तिरूपी लक्ष्मी को देती है।
कृत्वा न पूजां गुरुदेवयोः यः करोति किञ्चित् गृहकार्यजातम् । भक्त्या विहीनः भवतीह पापी, गाढ़ान्धकारे महति प्रविष्टः ॥
जो भगवान् की पूजा किये बिना तथा सद्गुरुओं की उपासना किये बिना भोजन करते हैं; वे केवल पाप रूपी अन्धकार का भक्षण ही करते हैं।
इसी बात को और स्पष्ट करते हुए मानतुंगाचार्य कहते हैं कि
नात्यद्भुतं भुवन भूषण भूतनाथ भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तम- भिष्टुवन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ।।
त्रिलोक भूषण ! आपके पवित्र गुणों से आपकी स्तुति का कोई आश्चर्य नहीं है, क्योंकि संसार में वे स्वामी मान्य नहीं हैं, जो अपने आधीन सेवकों को अपने समान नहीं बनाते ।
दर्शनार्थी किस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् के तुल्य बन जाते हैं यह निम्न दृष्टान्त से भी स्पष्ट हो जाता है
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