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जग आरत भारत महा, गारत करि जयपाय।
विजय आरती तिन कहुँ, पुरुषारथ गुणगाय॥ इसी प्रकार अन्य पूजाओं में भी आरती शब्द का अर्थ गुणगान करना ही सिद्ध होता है। अब यह प्रश्न उठ सकता है कि मन्दिर में बड़े-बड़े बल्ब, लाईट आदि से भी तो जीव मरते हैं, जनरेटर आदि चलाये जाते हैं, उससे भी तो तीव्र हिंसा होती है। इसका समाधान यह है कि इसका समर्थन भी हम नहीं करते, चूँकि आज के भौतिक युग में मनुष्यों में वैसी श्रद्धा नहीं है जैसी पूर्वकाल में थी। यह पंचमकाल का प्रभाव है यदि मंदिरों में बल्ब आदि नहीं जलायें तब रात्रि में मंदिर खुलेगा ही नहीं और लोग मंदिर में आना ही बन्द कर देंगे। तब स्वाध्याय आदि का क्रम लुप्त प्रायः हो जायेगा। रात्रि में तो मनुष्यों को अपने सब आरम्भ आदि क्रियाओं से विराम लेकर सामयिक आदि क्रियाओं में लीन होना चाहिए। लेकिन ऐसा तो करते नहीं तथा जिनदर्शन करना तथा जिनालय आना ही बन्द कर देंगे तब महान् अहित होगा। आज भी दिल्ली के धर्मपुरा में 250 वर्ष प्राचीन मंदिर है, जहाँ बिजली का कनैक्शन ही नहीं है तथा रात्रि में मंदिर खुलता ही नहीं है, दीपक व अखण्ड ज्योति जलाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। दूसरे, मंदिर में बल्ब आदि जलाने में धर्म नहीं माना जाता, परन्तु दीपक जलाकर आरती करने को लोग धर्म मानते हैं। इस प्रकार यह उल्टी मान्यता होने के कारण मिथ्यात्व की ही श्रेणी में आता है। आज के सन्दर्भ में दीपक व आरती का यथार्थ अभिप्राय व प्रयोजन जानकर प्रचलित प्रथा को सही दिशा देने का प्रयास करना चाहिए तथा रूढिवाद, अज्ञानता व पक्षपात को छोडकर सही मार्ग को समझकर जिनधर्म की सच्ची प्रभावना करना चाहिए।
आशिका लेना मिथ्यात्व है-प्रायः यह देखा जाता है कि जब पूजा समाप्त हो जाती है तब ठोने के ऊपर चावलों (पुष्पों) की दोनों हाथों से आशिका ली जाती है, इसी प्रकार दीपक की भी (यदि कोई जलाता है तब) तथा अन्य वस्तुओं की भी जो दोनों हाथों से आशिका ली जाती है, उसका प्रयोजन क्या है, यह कहीं शास्त्रों में देखने को नहीं मिला। अत: यह केवल मिथ्यात्व है और मिथ्यात्व का फल संसार भ्रमण है। इस प्रकार की क्रिया
से कोई विनय आदि सिद्ध नहीं होते। 7. धूप- भव्य जीव भगवान् के सामने चन्दन आदि सुगन्ध द्रव्यों की धूप बनाकर थाली में
चढ़ाते हैं वे कर्म रूपी ईंधन को भस्म करते हैं। धूप बनाने के लिए चन्दन की गट्टी बाजार से लाकर कर रेती से रेत लेना चाहिए। तीन दिन की धूप एक साथ रेत कर रखी जा सकती है। इस धूप को हमेशा पूजा की थाली में ही चढ़ाना चाहिए। यदि आप इसे अग्नि में खेवेंगे
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