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________________ (विशेष-बाजार में केसर प्रायः अशुद्ध मिलती है। हमें कश्मीर सरकार के केसर अधि कारियों से ज्ञात हुआ है कि यह अशुद्ध केसर मुर्गे की आँतों और खून से तैयार की जाती है। यदि दूरवीक्षण यन्त्र से देखा जाय तो इस बात की पुष्टि सहज ही हो जाती है। मन्दिर के लिए केसर कश्मीर सरकार से ही मँगानी चाहिए। अन्यथा चंदन का ही प्रयोग करना चाहिए। 3. अक्षत- अखण्ड और उज्ज्वल अक्षतों से भगवान् जिनेन्द्र देव की पूजा करने से अक्षयपद अर्थात् मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है। 4 पुष्प-सफेद अखण्ड चावलों को रंग कर उसमें पुष्पों की कल्पना करनी चाहिए। हरे पुष्पों का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें विकलेन्द्रिय जीव विद्यमान रहते हैं। इस प्रकार रंगे हुए चावल चढ़ाते समय कोई कह सकता है कि-'आप सत्य नहीं बोल रहे हैं, चढ़ा रहे हैं रंगे हुए चावल और बोल रहे हैं पुष्प।' इसका समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं कि जब स्थापना निक्षेप के द्वारा पत्थर की मूर्ति में भगवान् के गुणों की स्थापना करके उसे पूजा जा सकता है तब इसी प्रकार हिंसा को बचाने के लिए चावलों में पुष्पों की कल्पना करके क्यों नहीं उनको पुष्पों की तरह चढ़ाया जा सकता? अतः चढ़ाये जा सकते हैं और रंगे हुए चावलों को चढ़ाते समय पुष्प कहना असत्य नहीं है। 5. नैवेद्य-गोले की चटक बनाकर पूजा करनी चाहिए। यदि आप इसके स्थान पर या इसके साथ कोई मिष्ठान्न, लड्डू, बर्फी या कोई पकवान चढ़ाएं तब आरम्भ होना निश्चित है और जहाँ आरम्भ होगा वहाँ हिंसा होगी। इसके अतिरिक्त जहाँ वह चढ़ेगा वहाँ अनेक जीव-जन्तु आ जायेंगे। इसलिए नैवेद्य की कल्पना गोले की चटक में करनी चाहिए। गोले की चटक के अतिरिक्त बाकी अन्य मिष्ठान्न सचित्त हैं। निर्वाण दिवस पर निर्वाण लड्डू नहीं अपितु निर्वाण फल चढ़ाना चाहिए-अनेक स्थानों पर आजकल तीर्थङ्करों के मोक्ष कल्याणक के दिन मन्दिर जी में मीठा लड्डू चढ़ाने लगे हैं। यह क्रिया उचित नहीं है, हिंसाजनक क्रिया है। हमने बहुत शास्त्र पढ़े कहीं भी लड्डू चढ़ाने का कथन नहीं मिला। लड्डू पहले दिन अथवा कई दिन पहले बनाया जाता है, जिससे वह मर्यादित नहीं रहता तथा इसके बनाने में महान् आरम्भ होता है। प्रायः बनाने वाले अविवेकी होते हैं, उन्हें पानी छानने आदि की क्रियाओं को सामान्य ज्ञान भी नहीं होता है। सब कार्य पैसे देकर व्यापारिक स्तर पर कराया जाता है। इसलिए मन्दिर जी में लड्डू चढ़ाना नितान्त विपरीत क्रिया है। जब ये मीठे लड्डू चढ़ाये जाते हैं तो मन्दिर में अनेक चींटियाँ, जीव-जन्तु आदि आ जाते हैं और उनकी हिंसा हो जाती है। - 347 =
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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