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महापाप स्त्रियों को लगता है। अत: स्त्री द्वारा भगवान का अभिषेक करना सर्वथा धर्म विरुद्ध क्रिया है। इसे नहीं करना चाहिए।
नित्यमह (पूजा) के पाँच अंग-आचार्यों ने नित्यमह (पूजा) के पाँच अंग बताये हैं। (मह का अर्थ पूजा है-नित्य पूजा करना नित्यमह है।) यह चार प्रकार की है(1) आह्वान (2) स्थापना (3) सन्निधिकरण (4) पूजन (5) विसर्जन
विशेष-जब भगवान के समवशरण में 20 हजार सीढियाँ चढकर श्रावक पहुँचते हैं और उनकी वन्दना-पूजा करते हैं तब वहाँ क्या कोई जलाभिषेक या पंचामृताभिषेक से पूजा की जा सकती है अर्थात् नहीं, तो फिर क्या वहाँ भगवान की पूजा नहीं हुई? हुई और अवश्य हुई। इस प्रकार आज जो यह सब हो रहा है कि अभिषेक बिना पूजा पूर्ण नहीं, ये सब कल्पना के आधार पर ही है। यह मिथ्यात्व है और मिथ्यात्व का फल अनन्त संसार है। पूजा के आठ द्रव्य ___शास्त्रकारों ने पूजा के आठ द्रव्य बताये हैं- (1) जल, (2) चन्दन, (3) अक्षत, (4) पुष्प, (5) नैवेद्य, (6) दीप, (7) धूप और (8) फल।
ये आठों द्रव्य अचित्त ही होना चाहिए, सचित्त नहीं। जो श्रावक सचित्त दोष से भयभीत हैं, विवेकी हैं और ज्ञानी हैं, वे अचित्त द्रव्य से ही पूजन करते हैं। अब प्रश्न उठता है कि अचित्त द्रव्य कौन-कौन से हैं जिससे हम पूजन कर सकें। शास्त्रकारों ने निम्न आठ द्रव्यों को अचित्त
माना है
जल-सफेद व अत्यंत गाढ़े वस्त्र को दुहरा करके उससे पानी छानना चाहिए तथा छन्ने के मध्य स्थित जीवों को बड़े यत्न से छने जल के द्वारा नीचे जल की सतह में पहुँचा देना चाहिए। इस प्रकार जिवानी करके, छने जल को दो घड़ी अर्थात् अड़तालीस मिनट के अन्दर गर्म करके लौंग आदि से प्रासुक करना चाहिए। यह अचित्त जल ही पूजा में प्रयोग होने योग्य है। इस शुद्ध जल से जीव के आश्रित अनन्त संताप को देने वाली जन्म, जरा,
और मृत्यु रूपी अग्नि को बुझाने के लिए अरहंत भगवान के दोनों चरणों के आगे तीन धाराओं का क्षेपण करना चाहिए। चन्दन-शुद्ध जल में शुद्ध केसर या चन्दन मिलाकर, चन्दन द्रव्य बनाना चाहिए। इसमें हार-सिंगार के फूलों का प्रयोग कभी भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें सक्ष्म जीव पानी का संयोग पाकर तुरन्त पैदा हो जाते हैं, इसलिए हार-सिंगार का प्रयोग सचित्त द्रव्य माना गया है, इससे पूजन करना उचित नहीं है। जो श्रावक अचित्त द्रव्य शुद्ध चन्दन से जिनेन्द्र भगवान की पूजन करते हैं वे इसके प्रभाव से स्वर्ग में अत्यन्त उत्तम सुगन्धित शरीर पाते हैं।
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