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________________ सोने की बेड़ी अच्छी लगती है। दूसरे शब्दों में अपनी पराधीनता पर प्रसन्न होना मूर्खता ही है। विवाह का बन्धन दुःख का कारण है। परन्तु चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से यह प्राणी संयम के मार्ग में चलने के लिए समर्थ नहीं हो पाता। ___ कुछ क्षण विचार कर संसार की असारता को जानने वाली सरला ने माता-पिता के चरणस्पर्श करके नमस्कार किया। माता-पिता ने आनन्दांश्रु के साथ पुत्री को वक्षस्थल से लगाकर आशीष दिया और भविष्य के लिए शिक्षा इस प्रकार दी-बेटी! तुम माता-पिता को छोड़कर पराये घर बहू बनने जा रही हो। वहाँ संभल-संभल के रहना। अपने विनय, नम्रता और सद्व्यवहार के द्वारा सबको प्रसन्न रखना। ससुर एवं सासु को माता-पिता समझना, ननद को अपनी बहन और देवर को भाई समझकर दुलार करना। अपने से बड़ी जेठानी का सत्कार करना। अपने घर में कभी कलह-क्लेश नहीं करना। पति की सेवा करना क्योंकि स्त्रियों के लिए पति की सेवा से बढ़कर अन्य कोई दूसरा बड़ा कार्य इस संसार में नहीं होता। कहा भी है नास्ति स्त्रीणां पृथग् यज्ञो, न व्रतं नान्युपपोषण। पति शुश्रूयते येन तेन, स्वर्गे न हीयते।। पतिव्रता नारियाँ अनायास ही सर्व सिद्धियों को प्राप्त कर लेती हैं। इसलिए बेटी स्वप्न में भी पति का अनादर न करना। प्रात:काल उठकर उनके चरणों को नमस्कार करना और रात्रि को उनके चरणों को दबाकर सोना। पति की आय के अनुसार व्यय करना। घर पर आये अतिथि का सत्कार करना। अत: बेटी तुम अपने व्यवहार से सबको प्रसन्न रखना। ____आगे माता-पिता शिक्षा देते हैं कि इन लौकिक कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रतिदिन प्रात: देवपूजा, गुरु की उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और पात्र दान, ये धार्मिक कार्य गृहस्थों के षट् आवश्यक नियम से करना, भूलना नहीं। इनका पालन करना, अपने शील और संयम का पालन करने के लिए सीता, अंजना, चन्दना और अनन्तमति बनने का यथायोग्य प्रयत्न करना। ___जिस प्रकार नमक के बिना भोजन की, आँख के बिना मुख की, न्याय के बिना राज्य की, सत्य के बिना कंठ की, दान के बिना हाथ की, सूर्य के बिना दिन की, चन्द्रमा के बिना रात की, सुगंध के बिना फूल की और पुत्र के बिना कुल की शोभा नहीं होती, ठीक इसी प्रकार बेटी! शील के बिना नारी की शोभा नहीं है। यदि तू अपने शील व संयम को सुरक्षित रखेगी तो देव तुम्हारे चरणों को धूल को मस्तक पर चढ़ाकर कृत्य-कृत्य हो जायेंगे। सरला के पिता ने पत्री को धर्मोपदेश और सत शिक्षा देने के साथ-साथ यह भी कहा कि बेटी कभी भी घर की बात बाहर मत कहना। कटु वचनों के द्वारा किसी का हृदय मत दुखाना। सरला माता-पिता की शिक्षा को शिरोधार्य करके अपनी ससुराल चली जाती है। पति के घर में 336
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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