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________________ प्रवेश करते ही घर का वातावरण स्वर्ग के समान बन जाता है। वह यहाँ अपने सद्व्यवहार से सबको अपना बना लेती है। यद्यपि घर में सांसारिक भोगों की कमी नहीं थी। पंचेन्द्रियों के सब विषय सुलभ थे। घर के सभी सदस्य धार्मिक क्रियाओं से अनभिज्ञ थे। निशदिन पंचेन्द्रिय भोगों में लीन रहते थे। घर के सदस्यों की इस प्रकार की क्रियाओं से सरला का मन बहुत खेद खिन्न हो जाता है। अब सरला को उपाय विचय नामक धर्मध्यान की भावना जागृत होती है, अर्थात् यह संसारी प्राणी अन्याय मार्ग को छोड़कर सन्मार्ग में कैसे लगे, इस प्रकार का चिन्तन वह करने लगी। मेरे कुटुम्बीजन विषयों से, भोगों से कैसे विरक्त होकर धर्म के मार्ग में लगे एतदर्थ सरला प्रयत्नरत थी । सर्वप्रथम उसे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर धीरे-धीरे उसे सफलता मिलने लगी। उसने अपने पति, जिठानी, जेठ को धार्मिक बना लिया। सासू अभी जिनधर्म के तत्त्वों में शंकालु थी और ससुर को तो धर्म का नाम विष के समान प्रतीत होता था । एक दिन उस सेठ के घर दिगम्बर मुनि का आगमन होता है। साधु महाराज को आते देखकर सरला उनका पडुगाहन करती है तथा बड़ी भक्ति से आहार देकर स्वयं को धन्य मानती है। मुनि महाराज की युवावस्था और चेहरे के तेज से सरला के हृदय में कई सहज प्रश्न उठ खड़े होते हैं। वह धर्म भाव से पूछती है कि हे मुनीश्वर ! अभी तो सबेरा ही है। इतनी जल्दी क्यों की, बाल मुनि ने उनकी धार्मिक रुचि देखकर उत्तर दिया- “ बहन ! मुझे काल का पता नहीं चला। " ससुर अभी दुकान से लौटे ही थे। मुनिराज को घर पर देखकर पहले तो उनको क्रोध आया। फिर जिज्ञासु हो दरवाजे के पीछे जाकर खड़े-खड़े उनका वार्तालाप सुनने लगे। दोनों की बात सुनकर उनका मस्तिष्क चक्कर खाने लगता है। वह मन ही मन सोचता है कि दोनों कितने मूर्ख हैं। सूर्य सिर पर चढ़ आया है और बहू कह रही है कि अभी तो सवेरा ही है तथा इसका गुरु ( मुनिराज ) उत्तर दे रहे हैं कि मुझे समय का पता नहीं चला। दोनों के प्रश्नोत्तर अभी चल ही रहे थे कि मुनिराज ने सरला से पूछा - " भगिनी ! तुम्हारे पति की उम्र कितनी है,' सरला कहती है कि- 'पाँच वर्ष की । ' पुनः पूछते हैं कि 'तुम्हारी जेठानी की आयु कितनी है ?' उत्तर मिलता है-'दो वर्ष की। ' 'तुम्हारे जेठ साहब की कितनी आयु है?' एक वर्ष की । फिर मुनिराज पूछते हैं कि- 'तुम्हारी सासू की कितनी आयु है', सरला ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि- ' वे तो अभी झूले में ही झूल रही हैं। पुनः मुनिराज कहते हैं कि- 'तुम्हारे ससुर की कितनी आयु है?' उत्तर मिलता है कि-'उनका तो अभी जन्म ही नहीं हुआ।' मुनिराज ने पूछा- 'बहन ये ताजा खा रहे हैं कि बासी ?' सरला कहती है-'गुरुदेव हम तो बासी ही खा 337
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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