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________________ लेना होगा। इसकी प्राप्ति के लिए आचार्यों ने हमें प्रतिदिन कुछ करने योग्य कार्य बताये हैं, जिन्हें षट् आवश्यक कहते हैं। ये षट् आवश्यक देवों में नहीं हैं, तिर्यचों में नहीं है और नारकियों में भी नहीं है। ये केवल मनुष्य पर्याय में ही संभव हैं। षट् आवश्यक-परिभाषा-अवश्य करने योग्य क्रिया को आवश्यक कहते हैं, अथवा जो वश में नहीं है (इन्द्रियों के आधीन नहीं है) वह अवश है, अवश के कार्य आवश्यक हैं। इसलिए धर्मात्मा को अपने त्रिरत्न को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिदिन ये कार्य करने चाहिए। ये कार्य छह ___षट् आवश्यकों का वर्गीकरण-षट् आवश्यकों को संयम धारण करने की भूमिकानुसार मुनि और गृहस्थ के षट् आवश्यक के रूप में विभक्त किया गया है। ___ मुनि के षट् आवश्यक कार्य-महाव्रतों के धारक मुनिराजों के षट् आवश्यक पं. दौलतराम जी के अनुसार निम्न होते हैं समता सम्हारे थुति उचाएँ, बन्दना जिन देव को। नित करें श्रुतिरति, करें प्रतिक्रम, तजैंतन अहमेव को।५॥ छह ढाला-छठी ढाल सामायिक, वन्दना, स्तुति, स्वाध्याय प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के छह मुनिराजों के आवश्यक हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न है1. सामायिक-किसी को भला और किसी को बुरा आदि न मानकर सबके ऊपर एक समान दृष्टि रखना 'समभाव' है; अथवा त्रिकाल में पंच नमस्कार का करना सामायिक है; अथवा जीवन-मरण, लाभ-अलाभ, संयोग-वियोग में शत्रु-मित्र में समभाव रखना सामायिक है। 2. वन्दना-एक तीर्थङ्कर से सम्बन्धित नमस्कार करना वन्दना है। 3. स्तुति-चतुर्विशति तीर्थङ्करों का गुणगान करना, स्तुति स्तव है। 4. स्वाध्याय-वैराग्यवर्द्धक शास्त्रों का पठन-पाठन करना स्वाध्याय है। 5. प्रतिक्रमण-अपने सदाचार में आये दोषों का संशोधन करना प्रतिक्रमण है। 6. कायोत्सर्ग-शरीर से ममत्व का त्याग करना और जिनेन्द्रदेव के गुणों का चिंतन करना कायोत्सर्ग है। ये छह आवश्यक कार्य मुनिराज प्रतिदिन करते हैं। गृहस्थों के षट् आवश्यक कार्य-प्राचीन काल में (प्रथम, द्वितीय और तृतीय काल में) - 331
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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