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गाँधी जी का त्याग गाँधी जी जब विदेश से वकालत की पढ़ाई करके अपने देश लौटे तो यहाँ भारत की परतन्त्रता को देखकर चिन्तित हो गये। उन्होंने सोचा कि मुझे अपने देश को स्वतंत्र कराना चाहिए। अतः वे अपने देशवासियों को जानने के लिए निकल पड़े। एक जगह वे देखते हैं कि नदी के किनारे एक महिला अपनी धोती धो रही है, किन्तु उसके पास अपना तन ढकने के लिए दूसरी धोती नहीं है। आधी को अपने शरीर पर लपेटे हुए है और आधी को धो रही है। यह देख गाँधी जी बहुत दु:खी होते हैं। वे अपनी चादर उतारते हैं और दूर से ही नदी में बहा देते हैं। जब यह चादर बहकर उस महिला के समीप आती है तो वह महिला उसको लपककर पकड़ लेती है और अपना तन पूरा ढक लेती है। गाँधी जी इसी क्षण से अपने सब परिग्रह का त्या कर देते हैं और मात्र एक छोटी-सी धोती और दुपट्टे को पहनने का ही जीवन पर्यन्त प्रमाण कर लेते हैं। यह त्याग गाँधी जी का संसार भर में प्रसिद्ध है, जिसके कारण वे महात्मा गाँधी कहलाने लगे। ___परिग्रह अभिमान का कारण होता है, इस को पं. बनारसीदास जी स्पष्ट करते हुए कहते हैं -
कंचन-भंडार भरे मोतिन के पुंज परे, घने लोग द्वार खरे मारग निहारते। जान चढ़ि डोलत हैं झीने सुर बोलत हैं, काहु की छू औरह नेक नाके ना चितारते॥ कौलौं धन खांगे कोउ कहै यौं न लांगे, तेई, फिरै पाँय नागे कांगे परपग झारते। एने पै अयाने गरबाने रहें विभौ पाय,
चिक है समझे ऐसी धर्म ना संभारते। जिसके यहाँ सोने के भण्डार भरे रहते हैं, मोतियों के ढेर पड़े हैं, बहुत से लोग उनके आने की राह देखते हुए दरवाजे पर खड़े रहते हैं, जो वाहनों पर चढ़कर घूमते हैं, झीनी आवाज में बोलते हैं, किसी की भी ओर जरा ठीक से देखते तक नहीं हैं, जिनके बारे में लोग कहते हैं कि इनके पास इतना धन है कि उसे ये न जाने कब तक खायेंगे, इनका धन तो ऐसे-वैसे कभी खत्म ही नहीं होने वाला है, वे ही एक दिन (पाप कर्म का उदय आने पर) कंगाल होकर नंगे पैर घूमते हैं और दूसरों के पैरों की मिट्टी झाड़ते रहते हैं, सेवा करते हैं।
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