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मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा (ग्लानि) स्त्रीवेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद ये चौदह प्रकार के अन्तरंग परिग्रह होते हैं। 2. वाह्य परिग्रह-आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं -
अथ निश्चित्तसचित्तौ वाहपरिग्रहस्य भेदौ द्वौ। नैषः कदापि संगः सर्वोऽप्यतिवर्तते हिंसाम्॥
- पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 117 बाह्य परिग्रह अचेतन और सचेतन के भेद से दो प्रकार का है। सोना, चाँदी, मकान, वस्त्रादि चेतन रहित पदार्थ अचित्त तथा पुत्र, कलत्र, दासी-दासादि चेतनासहित पदार्थ सचित्त कहे जाते हैं। ये दोनों ही प्रकार के परिग्रह हिंसा के बिना नहीं है। बाह्य परिग्रह के सन्दर्भ में आचार्य शिवकोटि इस प्रकार कहते हैं कि
क्षेत्र वास्तु धनं धान्यं द्विपदं च चतुष्पदं। यानं शय्यासनं कुप्यं भांडं संज्ञा बहिर्दश॥११५६॥
(भगवतीआराधना) क्षेत्र (खेत), वास्तु (मकान दुकान आदि), धन (सोना-चाँदी), धान्य (चावल, गेहूँ, आदि अनाज), द्विपद (दो पैर वाले जीव, जैसे दास दासी आदि), चतुष्पद (चार पैर वाले जीव, जैसे हाथी, घोड़ा, गाय भैंस आदि), यान (सवारी-पालकी, रथ आदि) शय्यासन (पलंग, कुर्सी सिंहासन आदि सोने बैठने की चीजें), कुप्य (सोना और चाँदी के अतिरिक्त ताँबा आदि अन्य सब धातु या वस्त्र आदि) और भांड (बर्तन, हल्दी, जीरा, मिर्च आदि मसाले अथवा किराने का सामान)-ये दस प्रकार के बाह्य परिग्रह हैं।
विशेष-वाह्य परिग्रह के दस भेद विशेषतया गृहस्थों की (अणुव्रतियों की) दृष्टि से हैं। महाव्रतियों की अपेक्षा चेतन और अचेतन-ये दो भेद ही पर्याप्त हैं। दस भेदों में द्विपद का अर्थ दासी-दास किया गया है, वहाँ स्त्री, पुत्रादि का ग्रहण नहीं किया गया पर महाव्रतियों की दृष्टि से किये गये चेतन और अचेतन-इन दो भेदों से स्त्री, पत्र आदि सभी चेतन का ग्रहण समझना चाहिए। द्विपद के अर्थ में इनके ग्रहण न करने का कारण यह है कि यदि कोई द्विपद प्रतिमाधारी परिग्रह का परिमाण करे तो वह माता, स्त्री, पुत्र, पुत्री, पौत्र आदि की संख्या निश्चित नहीं कर सकता। अतः द्विपद परिग्रह में वहाँ दासी-दास का ही ग्रहण समझना। ____ परिग्रही को कभी भी शान्ति का अनुभव नहीं होता, वह एक भ्रम में जीता रहता है। उसे सुख नहीं सुखाभास होता है। दूसरी ओर जो परिग्रह नहीं रखता, त्याग प्रवृत्ति जिसकी रहती है, वह हमेशा सुख शान्ति का अनुभव करता है। गाँधी जी का त्याग उनको 'महात्मा गाँधी' बना देता है। यह बात निम्न दृष्टान्त से समझी जा सकती है।
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