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________________ तो यहाँ आँगन में आम का पेड़ खड़ा हो जाये। आँगन में आम का पेड़ खड़ा हो जाता है। दूसरी बार वह कहती है कि यदि मैंने पर-पुरुष को अन्य दृष्टि से स्वप्न में भी देखा हो तो, इस वृक्ष पर फल लग जाये। वृक्ष पर तुरंत फल लग जाते हैं। तीसरी बार वह कहती है कि यदि नगर के राजा का शील सच्चा है तो आम भी पक जायें। अब आम पकते नहीं है। राजा इस दृश्य को देखकर शर्मिन्दा हो जाता है। वह भिखारी के रूप में कहता है कि हे माता! मुझे क्षमा कर दीजिए और वह अपने जीवन में शीलव्रत धारण कर लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शीलव्रत से मनुष्यों में अद्भुत शक्ति का समावेश हो जाता है। असिधारा व्रत-यह ब्रह्मचर्य व्रत का दूसरा प्रकार है। युवा स्त्री व युवा पुरुष को पर्याप्त निमित्त साधन उपलब्ध रहते हुए वे जब ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करते हैं, तब उसे असिधारा व्रत कहते हैं। जैसे पति-पत्नी का ब्रह्मचर्य से रहना। इसको निम्न दृष्टान्त से समझा जा सकता है। - असिधारा व्रत की महिमा एक नगर के अन्दर विजय नाम का एक लड़का रहता था तथा एक अन्य नगर में एक विजया नाम की लड़की रहती थी। इन दोनों का ब्रह्मचर्य का नियम इस प्रकार था कि विजया तो कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करती थी और विजय शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करता था। संयोगवश उन दोनों का आपस में विवाह हो जाता है। जब दोनों को एक दूसरे के नियमों का पता चला तो दोनों ब्रह्मचर्य से रहने लगे और आपस में तय करते हैं कि जब तक हमारे व्रतों का किसी को पता नहीं चलेगा, तब तक हम घर में रहते हुए असिधारा व्रत का पालन करते रहेंगे और पता चलने पर बाद में हम दोनों क्रमश: मुनि एवं आर्यिका दीक्षा ले लेंगे। इस प्रकार रहते-रहते उन्हें बारह वर्ष बीत जाते हैं। होनहार बलवान होती है। एक बार एक व्यक्ति ने पानी छानकर जीवाणी नहीं की। वह व्यक्ति घबरा जाता है और किसी मुनिराज के पास जाकर उन्हें सब बात बता देता है। मुनिराज बताते हैं कि इस नगरी में दो प्राणी असिधारा व्रत पाल रहे हैं। यदि तुम उन्हें भोजन कराओ तो आपका पाप नष्ट हो सकता है। तब वह व्यक्ति कहता है कि इस बात का मुझे पता कैसे चलेगा कि वे व्यक्ति कौन हैं। तब महाराज जी कहते हैं कि भण्डार में एक काले रंग का चन्दोवा बाँध दो, जब वे आयेंगे तो वह चन्दोवा सफेद हो जायेगा। अब वह व्यक्ति पूरे नगर को दावत देता है। लेकिन चन्दोवा काला ही रहता है, सफेद नहीं हुआ। तब वह व्यक्ति नगर में खोज करता है कि कौन व्यक्ति भोजन करने को नहीं आया, पता लगने पर उन दोनों को आमन्त्रित किया जाता है। तब अचानक चन्दोवा सफेद हो जाता है। उनके असिधारा व्रत का लोगों को पता चल जाता है। तब वे घर में एक मिनिट भी नहीं रहते। तुरन्त दोनों वन में जाकर गरुओं से दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। तपस्या में लीन होकर अन्ततोगत्वा मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। - 311
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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