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युवा-युवतियाँ फिल्म, टेलीविजन आदि देखते हैं और वैसा ही अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। फिर शील कैसे बच सकता है? आज फैशन में लड़के-लड़कियों की पहचान तक नहीं हो पाती। क्लबों की सजावट, होटलों की बनावट, साड़ियों की चमक, पैंटों की किरीज, जूतों की चमक, होठों की लाली, नाखून की पालिश, चमड़े का सुन्दर पर्स, चाल में नजाकत, बात में बल, चेहरे पर सफेदी, नयनों में गरीबी और व्यवहार में उग्रता, यह क्या भारत का आदर्श है, क्या यही भारतीय संस्कृति है? कदापि नहीं। हमारी भारतीय संस्कृति ऐसी नहीं है। भारत तो महान् देश है। इसमें महान शीलवान मनुष्य पैदा हुए हैं। ऐसी भूमि पर यदि कुशील का खेल होगा तो क्या होगा? भाई अगर तुम इस देश को, समाज को अपने कुटुम्ब को आदर्श बनाना चाहते हो तो आपको ब्रह्मचर्य अपनाना होगा। कहा भी है -
शीलधारी को मिलती है, सुमुक्ति नार, शील रल मोटा रल, है सब रत्नों की खान; शील रत्न मत छोड़िए, जब तक घट में प्राण। परनारी पैनी छरी, तीन ओर से खाये,
धन छीजै योवन हरे, मरे नरक में जाये॥ शीलव्रतधारी में अनेक शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसको जानने के लिए निम्न दृष्टान्त पठनीय है -
शीलव्रत की महिमा एक नगरी के अन्दर एक महिला एवं पुरुष स्वदारसन्तोष व्रत का पालन करते थे। एक दिन पुरुष व्यापार करने के लिए बाहर चला जाता है। जाते समय वह अपनी स्त्री से कहता है कि देखों मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, तुम पीछे से शीलव्रत का पालन करते रहना। स्त्री कहती है कि-ठीक है स्वामी। तुम भी शीलवत पर दृढ़ रहना क्योंकि बाहर बहुत सुन्दर-सुन्दर युवतियाँ मिलती हैं। सेठ बाहर चले जाते हैं। एक दिन उस नगरी का राजा हाथी पर सैर कर सेठानी के महल के नीचे से गुजरता है उसकी दृष्टि सेठानी पर पड़ती है, और वह सेठानी पर मोहित हो जाता है। राजा महलों में वापस आता है और आकर विचार करने लगता है कि किस तरह उस रूपवान महिला से मिलना चाहिए। वह उस स्त्री से मिलने के लिए भिखारी का वेश धारण कर लेता है और भिक्षा माँगने लगता है। प्रतिदिन उस महिला के पास भिक्षा माँगने जाने लगता है। इधर वह धर्मात्मा स्त्री, शीलवती महिला उस भिखारी को भिक्षा देती रहती है। एक दिन उस बनावटी साधु ने विचार किया कि जिस हेतु हम फकीर बने वह मतलब हल नहीं हो रहा है। उससे ऐसी वस्तु मांगी जाये जो वह मुझे समय पर न दे सके। माघ का महीना था, फकीर ने भिक्षा में आम के फल माँगे। वह सेठानी सोचती है कि माघ के महीने में मैं आम कहाँ से ला सकती हूँ फिर भी विचार करती है कि अगर साधु घर से वापस जाये तो यह दुःख की बात है। अत: सेठानी प्रभु से प्रार्थना करती है कि अगर मेरे पति बाहर गये हए शीलव्रत में सच्चे हैं
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