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4. वृष्येष्टरसत्याग-कामवर्धक गरिष्ठ रसों का त्याग करना। 5. स्वशरीरसंस्कारत्याग-अपने शरीर को संस्कारों का त्याग अर्थात् अपने शरीर को
नहीं सजाना-सँवारना। ये पाँच ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाएँ हैं, जिन्हें भाने से ब्रह्मचर्य दृढ होता है। व्यवहार ब्रह्मचर्य व्रत के भेद-व्यवहार ब्रह्मचर्य व्रत चार प्रकार का होता है(1) शीलव्रत, (2) असिधारा व्रत, (3) ब्रह्मचर्य व्रत, (4) अखण्ड ब्रह्मचर्य।
(1) स्वदारसंतोष (शीलव्रत)-जो व्यक्ति अपनी धर्मानुकूल विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री पर नजर नहीं रखता, उसे स्वदारसंतोष व्रत कहते हैं। इस प्रकार के ब्रह्मचर्य के शास्त्रों में अनेक दृष्टान्त पाये जाते हैं। निम्न दृष्टान्त दृष्टव्य है।
स्वदार संतोषी सेठ सुदर्शन सेठ सुदर्शन अपने जीवन में स्वदारसन्तोष अपना चुका था। सेठ सुदर्शन बहुत ही रूपवान था। एक बार की बात है कि नगर के राजा की रानी ने अपनी कुछ दासियों को लेकर सेठ सुदर्शन को महल पर बुलवा लिया। पुरुषों द्वारा शीलभंग (बलात्कार) करने की घटना सुनने को बहुत मिलती हैं किन्तु स्त्रियों द्वारा ऐसी घटना करना, बहुत ही कम देखने में आती है। यहाँ महल में रानी ने सेठ सुदर्शन के साथ ऐसा ही किया। रानी ने उसे पलंग पर डालकर बलात्कार करना चाहा। बार-बार, आलिंगन किया, सेठ सुदर्शन स्वदार संतोषी था, अत: उसे भोग न सकी। अन्त में जब रानी असफल रहती है तो दोष लगाती है। सेठ को फाँसी का आदेश मिल जाता है। सेठ को फाँसी लगाने के लिए जैसे ही सूली पर लटकाते हैं तो फाँसी का फंदा फूलों का हार बन जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वसरसन्तोष व्रत के कारण सेठ सुदर्शन की सली सिंहासन बन गयो। समाज के प्रति व्यक्ति को अपनी भूमिकानुसार यह व्रत पालन करना चाहिए।
महिला समाज में सीता को देखिए। रावण ने सीता को अनेक प्रलोभन दिये, किन्तु सीता ने यही कहा कि, अगर तुम मुझे हाथ लगाओगे तो नरक जाओगे। तुम्हारा यह सब वैभव मेरे लिए मिट्टी के समान है। तात्पर्य यह है कि शील की महिमा अद्भुत है। सीता की अग्नि परीक्षा में
अग्नि नीर बन जाती है और वह सिंहासन पर जा बैठती है। यह सब शीलव्रत का ही प्रताप था। ऐसे थे हमारे प्रचीन स्त्री-पुरुष। किन्तु आज भौतिक दानव का बोलबाला है। आज के
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