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________________ में भिन्नता होती है। वीर्य तो काँच की तरह चिकना और सफेद होता है, जबकि रज लाख की तरह लाल होता है। इस तरह रस से लेकर वीर्य व रज तक छळ धातुओं के पाचन करने में प्रति धातु 5 दिन के हिसाब से 30 दिन लगते हैं। ऐसा आयुर्वेद शास्त्र का सिद्धान्त है। यह वीर्य-रज शरीर के किसी विशेष स्थान में नहीं रहता, अपितु सम्पूर्ण शरीर ही इसका निवास स्थान है। बादाम या तिल में जैसे तेल, दूध में जैसे घी और ईख में जैसे मिठास कण-कण में भरी रहती है, उसी तरह वीर्य भी शरीर में प्रत्येक अणु व परमाणु में भरा रहता है। वीर्य की एक बूंद भी निकलना मानो अपने शरीर को नींबू की तरह निचोड़ना है। कितने भोजन से कितना वीर्य पैदा होता है, इसका निश्चय वैज्ञानिकों ने इस प्रकार किया है, कि एक मन पानी, चालीस किलो भोजन से एक किलो रक्त बनता है। फिर एक किलो रक्त से दो तोला वीर्य का निर्माण होता है। यदि स्वस्थ मनुष्य इतनी खुराक रोज खावें तो चालीस किलो खुराक चालीस दिन में खायेगा। अत: यह सिद्ध हुआ कि चालीस दिन की कमाई दो तोला वीर्य है। इस हिसाब से तीस दिन की अर्थात् एक महीने की कमाई डेढ़ तोला वीर्य हुई। तीस दिन की कमाई करीब एक बार में नष्ट हो जाती है। अब जरा सी बात है इतने कठोर परिश्रम से तीस दिन में प्राप्त होने वाली डेढ़ तोला अमूल्य व अतुल दौलत एक क्षण में फूंकना कितनी बड़ी मूर्खता है, यह कितना घोर पतन है। ऐसा उस मूर्ख बागवान के समान है जो तन-मन-धन से दिनरात परिश्रम करके फूलों का सुन्दर बाग तैयार करता है और पैदा हुए असंख्य फूलों का इत्र निकलवाकर नालियों में डालता है। ऋतुकाल का सच्चा अर्थ समझ कर महीने में दो बार से अधिक वीर्य कभी नाश करना ही नहीं चाहिए। ग्रीस (यूनान) के महाज्ञानी तत्त्ववेत्ता सुकरात से किसी ने पूछा कि रति प्रसंग कितने बार करना चाहिए, तो उत्तर दिया कि जन्म में एक बार, फिर पूछा यदि इतने में शान्ति न हुई-उत्तर मिला साल में एक बार, फिर पूछा यदि इतने में भी न रहा जाये तो-उत्तर मिला-माह में दो बार किन्तु मृत्यु जल्दी होगी। फिर पूछा यदि इतने पर भी शान्ति न मिले तो-अन्तिम उत्तर मिला कि अपनी मृत्यु का सामान लाकर घर में पहले रख दें और फिर दिल में जैसा आवे वैसा करें। ___ ब्रह्मचर्य और भोजन-भोजन और ब्रह्मचर्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैसा भोजन किया जाता है उसी अनुरूप मन और मस्तिष्क का निर्माण होता है। भोजन तीन प्रकार का होता है। (1) राजसी (2) तामसिक (3) सात्विक। आधुनिक युग में लोग राजसी और तामसिक भोजन अधिक करते हैं। मिर्च मसाले, मिठाइयाँ, अण्डे, माँस, बीड़ी, पान, चाय, कॉफी-ये सब उत्तेजक भोजन के अन्तर्गत आते हैं। इनके द्वारा मन काम-वासना की चाह उत्पन्न होती है। नाच, गाना, सिनेमा स्त्रियों के दर्शन आदि सब ब्रह्मचर्य को दूषित करते हैं। 307
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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