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________________ - 5. 3. विरुद्धराज्यातिक्रम-उचित न्याय से अधिक भाग को ग्रहण करना अतिक्रम है। राज्य के नियमों के विरूद्ध राज्य में विप्लव होने पर हीनाधिकमान से वस्तुओं का आदान-प्रदान तथा राजा (कानून) की आज्ञा के विरुद्ध चलना विरूद्धराज्यातिक्रम है। हीनाधिकमानोन्मान-देने-लेने के बाँट आदि कम-ज्यादा रखना हीनाधिकमानोन्मान है। प्रतिरूपकव्यवहार-असली के बदले नकली वस्तु चलाना या असली में नकली वस्तु मिलाकर उसका प्रचलन करना। जैसे-दूध में पानी मिलाकर बेचना। ये पाँच अतिचार (दोष)हैं अत: अचौर्यव्रती को उपरोक्त दोषों से बचना चाहिए। चोरी के त्याग के प्रकार-चोरी के त्याग के दो प्रकार होते हैं। इस सन्दर्भ में आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं कि असमर्था ये कर्तुं निपानतोयादिहरणविनिवृत्तिम्। तैरपि समस्तमपरं नित्यमदत्तं परित्याज्यम्॥ - पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 106 ___ जो जीव दूसरे के कुआँ, बावड़ी आदि जलाशयों का जल इत्यादि त्याग करने में असमर्थ है, उन्हें बिना दी हुयी वस्तुओं के ग्रहण करने का हमेशा त्याग करना चाहिए। चोरी का त्याग दो प्रकार का है1. सकल त्याग-इसमें सम्पूर्ण वस्तुओं का त्याग होता है, यहाँ तक की पानी-मिट्टी भी बिना किसी के दिये लेना चोरी के अन्तर्गत आ जाता है। इस प्रकार का त्याग मुनिधर्म में संभव है। यदि यह बन सके तो अवश्य करना चाहिए। 2. एकदेश त्याग-जब श्रावक सम्पूर्ण वस्तुओं का त्याग, करने में असमर्थ होता है, तब वह एकदेश त्याग करता है। श्रावक कुआँ, नदी आदि का पानी, खान की मिट्टी इत्यादि किसी के बिना पूछे भी ग्रहण कर ले तो उसका नाम चोरी नहीं है। यह श्रावकधर्म में ही संभव है। गिरी या भूली वस्तु का ग्रहण चोरी एक भारतीय व्यक्ति बल्व बनाने की विधि जानने हेतु जापान गया। वहाँ वह एक कीमती घड़ी अपने उपयोग के लिए क्रय कर लेता है। एक दिन वह किसी कार्यवश अपने शहर से बाहर जाता है। वहाँ वह एक होटल में जलपान आदि ग्रहण कर लौट जाता है। जब वह अपने कार्यालय में आता है तो उसे ध्यान आता है कि घड़ी तो होटल में ही रह गयी। वह यह सोचकर उदास हो जाता है कि अब घड़ी नहीं मिलने वाली। वहीं एक और महिला कार्य करती थी। उसको जब उदास देखा तो पछती है कि आपकी उदासी का कारण क्या है? तब वह भारतीय 302
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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