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पाता है। अब वह वापस आकर श्रीभूति से अपने रत्नों को माँगता है। श्रीभूति इसको अपमानित करके घर से निकाल देता है। इतना ही नहीं, श्रीमति राजा से भी उसकी शिकायत करता है कि वणिक पुत्र मुझे व्यर्थ ही बदनाम करता है। राजा का हृदय भी उसकी ओर से उत्तेजित हो जाता है। ___बुद्धिमान वणिक् पुत्र विक्षिप्त हो जाता है। वह राजमहल के पीछे एक इमली के वृक्ष पर चढ़ जाता और जोर से चिल्लाता है कि श्रीभूति ने मेरे रत्नों को हड़प लिया है। वे रत्न मेरे इस-इस रंग के थे। मैंने उसके पास धरोहर के रूप में रखे थे। इसकी साक्षी उसकी पत्नी है। यदि मेरा कथन रंचमात्र भी असत्य हो तो मुझे सूली पर चढ़ा दिया जाये। इस तरह चिल्लाते-चिल्लाते वणिक् पुत्र को छळ माह गुजर जाते हैं। एक दिन रानी का ध्यान उसकी ओर जाता है। वह राजा से कहती है कि तुम इस व्यक्ति को बुलाकर इसकी बात सुनो कहीं इसका कथन सत्य न हो राजा ने उसे बुलाया और उसकी सारी बातें ध्यान से सुनी। राजा को उनमें सच्चाई नजर आई और योजना बनाई। योजना के अनुसार रानी श्रीभूति को द्यूत-क्रीड़ा के लिए बुलाती है। श्रीभूति द्यूत-क्रीड़ा का रसिक था। रानी द्यूत-क्रीड़ा में श्रीभूति को हराती जाती है और अनेक वस्तुओं के साथ सातों रत्न जीत कर राजा को दे देती है। राजा इन रत्नों को अनेक रत्नों में मिलाकर वणिक् पुत्र को बुलाता है और उससे अपने रत्न चुनने के लिए कहता है। वणिक् पुत्र अपने रत्न चुन लेता है। यह देख राजा वणिक् पुत्र की बहुत प्रशंसा करता है। दूसरी ओर श्रीभति का सब कछ हरण करके गधे पर बिठाकर काला मँख कर एवं अपने देश से निकाल देता है। किसी की धरोहर हड़पना चोरी का बहुत ही घिनौना रूप है। विश्वासघात है। इस प्रकार चोरी से मनुष्य का सब कुछ मान-प्रतिष्ठा वैभव आदि नष्ट हो जाता है इसलिए सभी को व्यवहार चोरी न करने का व्रत ले लेना चाहिए।
अचौर्यव्रत के दोषों के सन्दर्भ में आचार्य उमास्वामी कहते हैं किस्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः॥
-तत्त्वार्थसूत्र. अ. 7.27 स्तेनप्रयोग, तदाहृतादान आदि आचार्यव्रत के अधोलिखित पाँच दोषअतिचार हैं - 1. स्तेनप्रयोग-चोरी करने के लिए किसी को स्वयं प्रेरित करना, दूसरे से प्रेरणा कराना या
ऐसे कार्य में सम्मति देना स्तेनप्रयोग है।
तवाहतादान-अपनी प्रेरणा या सम्मति के बिना किसी के द्वारा चोरी करके लाये हए द्रव्य को ले लेना।
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