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ग्राम-नगर आदि में भ्रमण करने पर गली-दरवाजा आदि में प्रवेश करने से क्या अदत्तादान होता है? इस प्रश्न का समाधान देते हुए आचार्य कहते हैं कि-"नहीं" यह अदत्तादान नहीं है, क्योंकि वह सभी के आने-जाने के लिए खुला है। वैसे भी गली आदि में प्रवेश करने में मुनि के प्रमत्तयोग नहीं होता। अभिप्राय यह है कि बाह्य वस्तु ली जाय या न ली जाय किन्तु जहाँ संक्लेशरूप परिणाम प्रवृत्ति होती है, वहीं स्तेय या चोरी है। इसका त्याग ही अचौर्य है। अतः अचौर्य व्रत का पालन तो पर वस्तु से ममत्व पर ही सम्भव है। अचौर्यव्रत को स्थिर करने के लिए आचार्य उमास्वामी कहते हैं किशून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माऽविसंवादा: पंच॥
___-तत्त्वार्थसूत्र. अ. 7.6 (1) शन्यागार वास-खाली घर, गुफा आदि में रहना। (2) विमोचितावास-किसी के छोड़े हुए घर में रहना। (3) परोपरोधाकरण-किसी स्थान पर रहते हुए दूसरे को न हटाना तथा यदि कोई अपने स्थान में आये तो उसे न रोकना। (4) भैक्ष्यशुद्धि-शास्त्रानुसार भिक्षा की शुद्धि रखना। (5) सधर्माविसंवाद-साधर्मियों के साथ यह मेरा है, यह तेरा है, ऐसा क्लेश व्यवहार नहीं करना। ये पाँच भावनाएँ होती हैं जिनके भाने से अचौर्य व्रत दृढ होता है। चोरी प्रगटरूप से हिंसा ही है। आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं
अर्था नाम य एते प्राणा एते बहिश्चराः पुंसाम्। हरति स तस्य प्राणान् यो यस्य जनो हरत्यर्थान्॥
___ - पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 103 ___ जो मनुष्य जिस जीव के पदार्थ अथवा धन को हर लेता है, वह मनुष्य उस जीव के प्राणों को हर लेता है, क्योंकि जगत् में यह धन-सम्पदा आदि पदार्थ मनुष्य के बाह्य-प्राण हैं। दूसरे शब्दों में धन-धान्य, दास-दासी, घर-जमीन, पुत्र-पुत्री आदि जितने भी पदार्थ जिस जीव के पास होते हैं वे सब उतने ही उसके बाह्य प्राण माने जाते हैं। उन पदार्थों में से किसी एक भी पदार्थ का नाश होने पर उसे अपने प्राणघात जैसा दुःख उत्पन्न होता है। इस अपेक्षा से इन पदार्थों को ही उसके प्राण कहा जाता है। जैसे 'अन्न ही प्राण है,''जल ही प्राण है,' इस वचन के अनुसार समझना चाहिए। इस प्रकार जो कोई किसी की कुछ भी वस्तु को चुराता है, वह उसकी हिंसा ही करता है। अत: कभी भी किसी की कोई वस्तु नहीं चुराना चाहिए।
धन में ही प्राण एक बार किसी शहर में एक महिला अपनी बहुत पुरानी नौकरानी के साथ रहती थी। दोनों में बहुत स्नेह हो चुका था। नौकरानी अपनी आवश्यकता से कम व्यय करती थी। जो कुछ भी
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