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________________ भावार्थ 1. वक्ता बुद्धिमान होना चाहिए, क्योंकि बुद्धिहीन में वक्तृत्व सम्भव नहीं । 2. समस्त शास्त्रों के रहस्य का ज्ञाता होना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों के सांगोपांग ज्ञान बिना यथार्थ अर्थ भाषित नहीं होता। 3. लोक व्यवहार का ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि लोकरीति के बिना वह लोक-विरुद्धवर्तन करेगा। 4. आशावान् (महत्त्वाकाँक्षी) नहीं होना चाहिए क्योंकि आशावान् होने पर वह मात्र श्रोताओं का मनोरंजन करेगा यथार्थ अर्थ का प्ररूपण नहीं करेगा। 5. कान्तिमान और प्रतिभाशाली होना चाहिए क्योंकि शोभायमान न होने पर यह महान् कार्य उसको शोभा नहीं देगा। 6. उपशम परिणाम वाला होना चाहिए, क्योंकि तीव्र कषायी व्यक्ति सबके लिए अनिष्टकारी और निन्दा का पात्र होगा। 7. श्रोताओं द्वारा प्रश्न करने के पहले ही उत्तर का ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि स्वयं ही प्रश्नोत्तर करके समाधान करने से श्रोताओं को उपदेश में दृढ़ता होगी। 8. प्रचुर प्रश्नों को सहने की क्षमता होनी चाहिए, क्योंकि यदि वह प्रश्न करने पर क्रोधित होगा तो श्रोता प्रश्न नहीं करेंगे तब उनका सन्देह कैसे दूर होगा । 9. प्रभुता सहित होना चाहिए, क्योंकि श्रोता उसे अपने से ऊँचा जानेंगे तभी उसको सम्मान देंगे तथा आदेश का पालन करेंगे। 10. दूसरों का मन हरने वाला (उन्हें अच्छा लगने वाला) होना चाहिए, क्योंकि जो असुहावना लगे उसकी शिक्षा श्रोता कैसे मानेंगे। 11. गुणों का निधान होना चाहिए, गुणों के बिना नेतृत्व शोभा नहीं देता । 12. स्पष्ट और मिष्ठ बचन कहने वाला होना चाहिए, स्पष्ट बचन कहे बिना श्रोता समझेंगे नहीं और मिष्ठ कहे बिना श्रोता को सुनने की रुचि नहीं होगी। अगर ये गुण न हो तो वक्तृत्व सम्भव नहीं हो सकता। इस संदर्भ में अनेक दृष्टान्त भी हैं हीरा अनर्थ की जड़ एक सम्पन्न कुल का मनुष्य था। वह मुनि बनने के लिए चल दिया, उसके घर में एक कीमती हीरा था, जिससे उसको बहुत मोह था। उसने वह हीरा साथ रखकर दीक्षा ले ली और 9
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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