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जो वीतराग का कहा हुआ, इन्द्रादिक से भी खण्डनरहित, प्रत्यक्ष व परोक्ष आदि प्रमाणों से निर्बाध तत्त्वों या वस्तु स्वरूप का उपदेशक, सबका हितकारी और मिथ्यात्व आदि कुमार्ग का नाशक होता है, उसे सच्चा शास्ता कहते हैं। भव्य जीवों को जिनवाणी का उपदेश देने वाले - " जो बुद्धि ऋद्धि के धारक हैं तथा अवधि, मनः पर्यय, केवलज्ञान के धनी हैं; वे महान् वक्ता हैं। ऐसे विशेष गुणों के धारी वक्ता का संयोग मिले तो बहुत अच्छा है और न मिले तो श्रद्धानादिक गुणों के धारी वक्ताओं के मुख से ही शास्त्र सुनना। इस प्रकार के गुणों के धारक मुनि अथवा श्रावक के मुख से भी शास्त्र सुनना योग्य है। पद्धति बुद्धि से अथवा शास्त्र सुनाने के लोभ से श्रद्धानादिगुणरहित पापी पुरुषों के मुख से शास्त्र सुनना योग्य नहीं है। कहा भी है:
तं जिणआणपरेण य धम्मो सोयव्व सुगुरुपासम्म । अह उचिओ सद्धाओ तस्सुवएसस्स कहगाओ ॥
जो जिन - आज्ञा मानने में सावधान हैं उस निर्ग्रन्थ सुगुरु के ही निकट धर्म सुनना योग्य है। अथवा उन सुगुरु ही के उपदेश के उचित श्रद्धानी श्रावक से धर्म सुनना योग्य है।
ऐसा जो वक्ता धर्म बुद्धि से उपदेश देता हो वही अपना व अन्य जीवों का भला करता है और जो कषाय आदि बुद्धि से उपदेश देता वह अपना तथा अन्य जीवों का बुरा करता है ऐसा जानना । "
वक्ता के
गुण
बताते हुए आचार्य गुणभद्र कहते हैं
प्राज्ञः प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः प्रव्यक्तलोकस्थिति, प्रास्ताशः प्रतिभापरः प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तरः । प्राय: प्रश्नसह प्रभुः परमनोहारी परानिन्दया, ब्रूयाद्धर्मकथां गणी गुणनिधिः प्रस्पष्टमिष्टाक्षरः ॥ ९५ ॥
पद्य
धर्म कथा कहने का अधिकारी हो प्रज्ञायुत शास्त्रज्ञ । हो प्रतिभा सम्पन्न क्षीण आशामय, लोक-स्थिति का विज्ञ ॥ प्रशम, प्राग्दृष्टा प्रश्नों का, प्रश्न सहन करने वाला। प्रभुतायुत, गुणनिधि, मृदुभाषी, सबका मन हरने वाला ॥
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(आत्मानुशासन)