SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हीरा पीछी में बांध लिया। आगे चलकर वे कुशल वक्ता बन गए, वे मुनिराज पाँचों महाव्रतों में चार पर खुलकर उपदेश देते, पर जब परिग्रह का क्रम आता तब वाणी मंद हो जाती। उनके पास एक शिष्य रहता था। शिष्य ने सोचा पता नहीं, महाराज परिग्रह पर प्रवचन करने में हिचकिचाते क्यों हैं? हो न हो इनके पास जरूर कोई परिग्रह होगा। शिष्य ने खोज-बीन प्रारंभ कर दी। एक दिन उसकी दृष्टि पीछी पर पड़ गई। उसमें एक हीरा बंधा हुआ था। शिष्य सोचने लगा कि गुरु के पास यही परिग्रह है और इसी कारण वे परिग्रह पर प्रवचन नहीं कर पाते। उसने चुपचाप हीरा निकाला और समुद्र में डाल दिया। फिर गुरु से जाकर कहता है, गुरुजी, अब आप प्रवचन खुलकर देना; क्योंकि आपके पास जो दु:ख था, वह मैंने मिटा दिया है। गुरु ने कहा, कैसा दुःख? शिष्य बोला-जो आपके पास हीरा था वह मैं समुद्र में फेंक दिया। गुरु बोले, बेटा, तुमने हमें सुखी बना दिया। हम उससे बहुत दु:खी थे। सच-उसी के कारण हम अपरिग्रही होने का उपदेश नहीं दे पाते थे। गुड़ खाने वाला साधु एक साधु गुड़ खाता था। एक दिन उनके पास एक महिला आई और बोली- “साधु जी! मेरा लड़का गुड़ बहुत खाता है, आप यह बताइए मैं क्या करूँ? साधु जी बोले- "अभी आठ दिन बाद बताएँगे।" वह महिला आठ दिन बाद आई और बोली- “साधु जी! आज बता दीजिये।" साधु जी कहते हैं "आठ दिन बाद आना।" साधु ने लगातार उसको एक महिने तक बुलाया। एक महिने बाद साधु जी ने उससे कहा, "लड़के को गुड़ का त्याग करा दो।" तब वह महिला बोली कि यह बात तो आप पहले से बता देते। साधु जी ने कहा, जब मैं स्वयं गुड़ खाता था। तब दूसरों को कैसे उपदेश दे सकता था। अगर व्यक्ति कम ज्ञानी है तब भी आचरण का प्रभाव पड़ेगा। अगर विषय भोगी अधिक ज्ञानी हो तो उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। जो दूसरों को उपदेश देते हैं स्वयं जीवन में उतारते नहीं, वह भी उपदेश देने के पात्र नहीं होते। बैंगन खाने वाला पण्डित एक पण्डित जी उपदेश दे रहे थे कि बैंगन नहीं खाना चाहिए, वह बहु बीजा होता है, उसमें बहुत कीड़े होते हैं, इसके खाने से बहुत पाप लगता है। सारी जनता उनका उपदेश सुन रही थी। उपदेश देने से पहले पण्डित जी बाजार से बैंगन खरीद कर घर पर रख आए थे। उस सभा में उनकी स्त्री भी उपदेश सुन रही थी। वह घर गई और सारे बैंगन कूड़ेदान में फेंक दिये। पण्डित जी जब घर पर आए और खाना खाने बैठे। वे देख रहे थे कि खाने में बैंगन नहीं आए। उन्होंने जब अपनी स्त्री से पूछा, "आज हम बैंगन खरीद कर रख गये थे उसकी सब्जी क्यों नहीं बनाई।" स्त्री बोली, "बैंगनों को मैंने कूड़ेदान में फेंक दिया।" पण्डित जी गुस्से में आकर 10
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy