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________________ कहता है-'जी हाँ, मैंने चोरी की है, महल से दो रत्न चुरा कर लाया था, एक अपने साथी को दे दिया और एक मेरे पास है। अब राजा यह सुनकर मन्त्री से कहता है कि यह आदमी तो सच्चा है, तीसरा रत्न बताओ कहाँ है? मन्त्री ने घबराकर कहा-महाराज वह रत्न मैं ले आया था। राजा मंत्री को अपने महल से हटा देता है और चोर को मन्त्री बना देता है। सत्य में अपार बल होता है। सत्य के बल पर ही एक निम्न कोटि का चोर राजा का विश्वास पात्र मन्त्री बन जाता है। अतः जीवन में सदा सत्य बोलना चाहिए। यह देश साध-सन्तों और गांधी का देश कहलाता है। गांधी जी सत्य और अहिंसा के पजारी थे। वह एक जैन साध श्रीमद रायचन्द्र से पढे थे। इन्होंने सारे देश को सत्य का पार पढ़ाकर देश को स्वतन्त्र कराया था। यह सब सत्य और अहिंसा का ही बल था जो ऐसा संभव हो पाया। सत्य की जीत एक सत्यवादी राजा अपने सत्य के लिए बहुत प्रसिद्ध था। उसने एक बार एक नया बाजार अपनी प्रिय जनता के लिए खुलवाया और घोषणा की बाजार में जो सामान बिकने के लिए आये यदि वह नहीं बिके तो उसे मैं खरीद लूँगा। एक दिन एक आदमी शनि की मूर्ति सहित अन्य मूर्तियाँ लेकर बाजार आता है। मूर्तिकार की सब मूर्तियाँ बिक जाती हैं किन्तु शनि की मूर्ति का कोई खरीदार नहीं मिलता। तब मूर्तिकार विचारता है कि अब क्या किया जाये? लोगों की धारणा थी कि जिसके घर शनि की मूर्ति होगी, उसके घर धन-सम्पदा नहीं रहेगी। कारीगर सीधे राजा के दरबार में जाता है और राजा को सभी कुछ बता देता है। राजा कारीगर को मुँह माँगा दाम देकर उसे खरीद लेता है। राजा के महल में मूर्ति आते ही धन-लक्ष्मी भागने लगती है। रात्रि को स्वप्न में लक्ष्मी राजा से कहती है कि 'हे राजन! तुम्हारे घर में शनि की मूर्ति आ चुकी है, अतः मैं जा रही हूँ। इस पर राजा उत्तर देता है कि-'हे देवी! यदि तम्हें जाना है तो जाओ. पर मैं अपने वचन से पीछे नहीं हटूंगा, मेरे झूठ वचन का त्याग है। मैं सत्य को नहीं छोड़ सकता।' अब कुछ दिन बाद राजा को पुनः स्वप्न में धर्म आकर कहता है कि 'हे राजन्! मैं यहाँ नहीं रह सकता, तुम्हारे घर में शनि की मूर्ति रखी है।' तब राजा कहता है कि, 'मैं सत्य से बँधा हूँ, मैं सत्य को नहीं छोड़ सकता, यदि आप जाना चाहते हैं तो ठीक है।' अब राजा के घर में न लक्ष्मी रही न धर्म, राजा अब भी निश्चिन्त था। कुछ दिनों पश्चात् राजा को पुनः स्वप्न आता है। स्वप्न में सत्य कहता है कि 'हे राजन्! आज मैं भी तुम्हारे घर से जा रहा हूँ, क्योंकि तुम्हारे घर में शनि की मूर्ति रखी है। अब राजा अकड जाता है और कहता है कि-हे सत्य! आप मेरे घर से नहीं जा सकते। तुम्हारे कारण ही तो मैंने शनि की मूर्ति खरीदी थी, अतः आपको मेरे घर से जाने का अधिकार 296
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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