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________________ उपदेश करना मिथ्योपदेश है। (2) रहोभ्याख्यान- किसी की गुप्त बात प्रकट कर देना। (3) कूटलेखक्रिया- झूठे लेख, दस्तावेज आदि लिखना । (4) न्यासापहार-कोई मनुष्य कुछ वस्तु किसी के पास धरोहर के रूप में रख गया, फिर वापस माँगने आया तो भूलवश कम माँगता है, तब ऐसा कहकर कि तुम्हारा जितना हो उतना ले जाओ और उसे उसके अनुसार कम देना, न्यासापहार है। (5) साकार मंत्रभेद - चेष्टा आदि द्वारा दूसरे के अभिप्राय को जानकर ईष्यावश उसको प्रकट कर देना, साकार मंत्रभेद है। इन पाँच अतिचारों अर्थात् दोषों से सत्यव्रत मलिन होता है। सत्यवादी की महिमा अपार है। कदाचित् कभी झूठा आरोप लग भी जाए तो अन्त समय में जीत सत्यवादी की ही होती है। यह बात निम्न दृष्टान्तों से भली-भाँति समझी जा सकती है चोर से मन्त्री एक समय की बात है दिगम्बर मुनिराज उपदेश दे रहे थे कि सदा सत्य बोलना चाहिए, झूठ पाप है। वहीं एक चोर भी मुनिराज के उपदेश सुन रहा था। यह बात चोर के हृदय में कुछ-कुछ बैठती जा रही थी। चोर मुनिराज के पास आता है और कहता है कि, हे महाराज ! मैं चोरी करता हूँ, किन्तु मैं सत्य भी बोलना चाहता हूँ, क्या करूँ? महाराज कहते हैं न बोलने का नियम ले लो। तब वह चोर झूठ न बोलने का नियम ले कि - 'ठीक है, तुम झूठ लेता है। कुछ दिनों बाद वह चोर चोरी करने जाता है। रास्ते में इस चोर से जो भी पूछता है कि भाई तुम कहाँ जा रहे हो? तब चोर लिए गये नियम के अनुसार कह देता है, कि 'भाई मैं तो चोर हूँ, चोरी करने जा रहा हूँ।' हर व्यक्ति सोचता है कि यह कैसा चोर है। राजा भी इसी दिन शहर में स्वयं गश्त लगा रहा था। पूछता है कि तुम कौन हो चोर ने कहा - " मैं चोर हूँ, चोरी करने जा रहा हूँ।" राजा कहता है कि भाई मैं भी चोर हूँ। दोनों मिल जाते हैं और चोरी करने राजा के महल पहुँच जाते हैं। असली चोर अन्दर घुस जाता है, अलमारी में से माल चुराने लगता है । वहाँ अलमारी में तीन रत्न रखे थे, वह सोचता है कि तीन रत्न का बँटवारा कैसे करूँगा, दो रत्न उठा लेता है। इसलिए वह सोचता है कि एक-एक रत्न आपस में बाँट लेंगे- एक रत्न वहीं छोड़ देता है। बाहर आकर एक रत्न अपने साथी चोर (राजा) को लाकर दे देता है। राजा इस चोर का पता करता है तथा प्रातः कोतवाल को बुलाकर कहता है कि महल में चोरी हो गयी हैं चोर को पकड़कर ले आओ। इधर मन्त्री से भी कहता है कि जाओ महल के अन्दर देखो, अलमारी में से क्या-क्या चोरी हुआ है? मन्त्री अन्दर जाता है और अलमारी देखकर सोचता है कि यहाँ तो तीन रत्न रखे थे, किन्तु यहाँ केवल एक ही रत्न है। एक रत्न उठा लें, चोरी तो हो ही गयी है, राजा से कह देंगे कि तीनों रत्न चोरी हो गये हैं। इतनी देर में कोतवाल चोर को पकड़कर ले आता है। राजा चोर से पूछता है कि, "क्या तुमने रात को चोरी की? चोर 295
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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