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________________ में कषाय का पुट है, तब यह आत्मा के लिए बहुत ही अहितकारक होता है। संसार में राजा वसु का नाम असत्यवादियों में अति प्रसिद्ध है। इसका कारण यही था कि उसके द्वारा बोला गया झूठ कषाय जन्य था । पर्वत की माँ के चक्कर में पड़कर उसने 'अजैर्यष्टव्यम्" वाक्य का मिथ्या अर्थ किया था। इसलिए उसका तत्काल पतन हो गया। वह दुर्गति का पात्र बना। निश्चय सत्यव्रत 44 आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ आत्मा का नहीं हो सकता और दूसरे किसी का कार्य आत्मा नहीं कर सकता - ऐसा वस्तु स्वरूप निश्चय करना चाहिए। शरीर, स्त्री, पुत्र, धन और गृह आदि पर वस्तुओं के सम्बन्ध में भाषा बोलने के समय यह अभिप्राय (उपयोग ) रखना चाहिए कि 'मैं आत्मा हूँ,' एक आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई मेरा नहीं और मैं किसी का कुछ भी कर नहीं सकता, अन्य के सम्बन्ध में बोलने पर यह अभिप्राय यह विवेक जाग्रत रखना चाहिए कि वास्तव में 'जाति, लिंग, इन्द्रियादिक उपचारित भेदवाला यह आत्मा कभी नहीं है, परन्तु स्थूल व्यवहार से ऐसा कहा जाता है।' यदि इस तरह की पहचान के उपयोगपूर्वक सत्य बोलने का भाव हो तब वह पारमार्थिक अर्थात् निश्चय सत्य है। वस्तुस्वरूप की प्रतीति के बिना परमार्थ सत्य नहीं होता । सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ - सत्यव्रत को दृढ़ करने के लिए आचार्य उमास्वामी ने अधोलिखित पांच भावनाएं बतायी हैं। क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुबीचिभाषणं च पंच। - तत्त्वार्थसूत्र, 7.5 क्रोध का त्याग करना, लोभ का त्याग करना, भय का त्याग करना, हास्य का त्याग करना और शास्त्र की आज्ञानुसार निर्दोष वचन बोलना-ये पाँच सत्यव्रत की भावनाएँ हैं। सत्यव्रत के पाँच अतिचार आचार्य उमास्वामी कहते हैं कि सत्यव्रत को निर्दोष बनाने के लिए उसे अतिचार (दोष) रहित पालन करना चाहिए। अतिचार पांच हैं। मिथ्योपदेशरहो भ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः॥ - ( तत्त्वार्थसूत्र - अ. 7.) 26 (1) मिथ्योपदेशः - सन्मार्ग में लगे हुए किसी को भ्रमवश अन्य मार्ग पर ले जाने का 294
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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