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है कि, हे लकड़हारे, आज तुम अपनी कुल्हाड़ी मेरी गर्दन पर इतनी जोर से मारो कि मेरी गर्दन के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं। यह सुनकर लकड़हारा बहुत डर जाता है। कहता है कि सिंह भाई। आज तुम कैसी अनहोनी बात बोल रहे हो। सिंह कहता है कि हमारा आज यही निश्चय है, कि तुम अपनी कुल्हाड़ी से मेरी गर्दन उड़ा दो अन्यथा मैं तुम्हें अभी मार डालूंगा। यह बात सुनकर लकडहारे ने अपनी प्राण रक्षा के लिए सिंह की गर्दन पर बड़ी जोर से अपनी कुल्हाड़ी मार दी। सिंह कुल्हाड़ी के वार को झेल जाता है, किन्तु घायल होता हुआ कहता है कि, देख लकड़हारे! तेरे कुल्हाड़ी का वार तो मैंने सहन कर लिया, पर तेरे वचनबाणों का वार जो तूने मुझे गधैया बताया, सहन न कर सका। यह गर्दन का घाव तो आज नहीं कल भर ही जायेगा, लेकिन तेरे कर्कश वचन मुझे हमेशा चुभते रहेंगे। यह बात सुन लकड़हारा बहुत पछताता है।
इस प्रकार कभी भी किसी को कर्कश वचन नहीं बोलना चाहिए, ये वचन हिंसा के ही रूप होते हैं। इस प्रकार असत्य वचन हेय जानकर आचार्य अमृतचन्द्र उनको उपदेश देते हैं।
भोगोपभोगसाधनमात्रं सावधमक्षमा मोक्तुम्। ये तेऽपि शेषमनृतं समस्तमपि नित्यमेव मुञ्चन्तु॥
- पुरुषार्थसिव्प्युपाय, 101 जो जीव अपने न्यायपूर्वक भोगोपभोग के कारणभूत सावध वचन त्यागने में असमर्थ हैं, उन्हें भी समस्त मिथ्या वचनों का सदा त्याग करना चाहिए। यह त्याग दो प्रकार का है1. सर्वदेश त्याग-यह त्याग मुनिधर्म में ही संभव है। 2. एकदेश त्याग-यह त्याग श्रावक धर्म में होता है यदि सर्वदेश त्याग बन सके तो बहुत ही
उत्तम है और यदि कदाचित् कषाय के उदय से सर्वथा त्याग न बन सके तो, एकदेश त्याग अवश्य ही करना चाहिए।
असत्य वचन के कारण असत्य वचन के मुख्य दो कारण हैं-(1) अज्ञान और (2) कषाय। 1. अज्ञान-अज्ञान के कारण मनुष्य असत्य वचन बोलता है। यदि अज्ञानजन्य असत्य के
साथ कषाय का पुट नहीं है तो उससे आत्मा का अहित नहीं होता; क्योंकि वहाँ वक्ता अज्ञान से रहित है। ऐसा अज्ञान जन्य असत्य वचन योग आगम में बारहवें गुणस्थान
पर्यंत बताया गया है। 2. कषाय-कषाय के वशीभूत भी मनुष्य कुछ न कुछ झूठ बोलता है। यदि असत्य वचन
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